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________________ ५४] [ पुरुषार्थसिद्धय पाय करता है वैसा फल कर्मानुसार उसे मिल जाता है। कर्तावादी ईश्वरको दयालु भी बताते हैं । जो दयालु होता है वह समर्थ होने पर दुःखी जीवों के दुखको दूर कर सकता है, परन्तु आज दुनियां में अनेकों अंधे, भिखारी, लूले, लंगड़े, दीनहीन दुःख पा रहे हैं । क्यों नहीं ईश्वर उनपर दया करता ? क्यों दुष्काल पड़ते हैं ? क्यों असमयमें वर्षा होती है ? क्यों अग्नियां लग जाती हैं ? क्यों दुनियां महामारी, प्लेग, हैजा, एन्फ्लूएंजा आदि भयंकर रोगोंका ग्रास बनती चली जाती है ? क्या समर्थ और सर्वज्ञ ईश्वर इन सब बातोंका कुछ प्रतीकार नहीं कर सकता ? जब कि एक छोटासा राजा अपनी शकिके अनुसार अनेक कष्टोंको दूर करनेवाले सुप्रबन्ध कर डालता है, तो ईश्वरकी शक्ति तो अपार है, सब कुछ सुधार कर सकता है । फिर क्या बात है कि सभी जीव मनचाहा काम करते हैं, सभी परिणमन प्रकृतिके अनुसार होते हैं, ईश्वर-द्वारा कभी कोई सुधार देखने-सुनने में नहीं आता ? ईश्वरवादी इन बातोंका कुछ भी संतोषप्रद उत्तर नहीं दे सकते । वास्तवमें न कोई ईश्वर ऐसा होता है जो अनादि से शुद्धबुद्ध हो, सभी अनादिसे अशुद्ध होते हैं, पीछे मुकिलाम करते हैं । जगत् अनादिसे अनन्तकाल तक सदा अपने स्वरूपमें रहता है, न उसकी रचना होती है और न प्रलय ही होता है । सभी पदार्थ प्राकृतिक नियमके अनुसार परिणमन करते रहते हैं प्राकृतिक नियमले ही नदीके पत्थर गोल हो जाते हैं, उसीसे परमाणुओंका परिणामन होकर जल बरस जाता है, घास पैदा हो जाती है, जल स्थल हो जाता है, स्थल जल हो जाता है। पुद्गलमें अचिंत्य शक्ति है, उसमें स्वयं क्रिया होती है । संसारमें कुछ पदार्थ ऐसे हैं जो चेतनकर्ता द्वारा अनाये जाते हैं, कुछ ऐसे हैं जो अपने कारणों द्वारा स्वयं बनते और बिगड़ते हैं। ऐसा न तो कोई ईश्वर है जो जगत्को बनाता और बिगाड़ता हो, और न जगतका ही यह स्वरूप है कि वह रचाजाता और उसका प्रलय किया जाता हो । जीव भी सभी अपने कर्मों के अनुसार फल भोगते हैं, जबतक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001104
Book TitlePurusharthsiddhyupay Hindi
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1995
Total Pages460
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Principle
File Size11 MB
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