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[ पुरुषार्थसिद्धय पाय
दोनोंका एक समय कैसे हो सकता है ? कोई पदार्थ कभी उत्पन्न होता है
और कभी कालान्तरमें नष्ट होता है, दोनोंका एक समय कैसे कहा गया ?' इस प्रश्नके उत्तरमें यह समझ लेना चाहिये कि दोनोंका भिन्न समय समझना भ्रम है, जो एक पर्यायके उत्पन्न होनेका समय है, वही दूसरी पर्यायके नष्ट होनेका समय है। जैसे घड़ेका फूटना और दो कपालों (दो टुकड़ों) का उत्पन्न होना, दोनोंका एक ही समय है। वीजका नष्ट होना और अंकुरका उत्पन्न होना, दोनोंका एक ही समय है । जिस समय घड़ा फूटा हैं, उसी समय दो कपालोंका उत्पाद हुआ है और उसी समय मिट्टीका ध्रौव्य है। बीज जिस कालमें नष्ट हुआ है, उसी कालमें अंकुर उत्पन्न हुआ है और वृक्षका ध्रौव्य भी उसी क्षणमें उपस्थित है । इसलिए तीनोंका एक ही क्षण है परन्तु जो उत्पाद है सोही व्यय नहीं है । यहांपर अपेक्षाभेद है; उत्पाद जिस अपेक्षासे है, व्यय उससे भिन्न अपेक्षासे है और ध्रौव्य उससे भिन्न अपेक्षासे है । यथा-घड़ेके फूटनेकी अपेक्षासे तो व्यय है, दो कपालोंके उत्पन्न होनेकी अपेक्षासे उत्पाद है और मिट्टीकी अपेक्षा ध्रौव्य है । उसीप्रकार बीजकी अपेक्षा नाश, अंकुरकी अपेक्षा उत्पाद, तथा वृक्षकी अपेक्षा ध्रौव्य है; कारण वृक्षत्व दोनोंमें है। इसलिए उत्पादादि तीनों ही अपेक्षाभेदसे भिन्नभिन्न स्वरूप वाले हैं, परन्तु तीनोंका काल एक होनेसे वे एकपर्यायस्वरूप हैं। दो पर्याय नहीं हैं । जो घटका फूटना है, वही तो कपालका उत्पन्न होना है; न तो समयभेद ही है और न पर्यायभेद ही है । घट और कपालमें पर्यायभेद है, परन्तु घटनाश और कपालोत्पादमें पर्यायभेद नहीं है और पर्यायभेद न होनेसे तीनोंको एकरूपता आती है; इसके लिए अपेक्षाभेद है।
कोइ कोई ध्रौव्यको स्थाई समझते हैं, इसीलिये वे व्यय-उत्पादको पर्याय और ध्रौव्यको गुण बतलाते हैं । परन्तु वास्तवमें ऐसा नहीं हैं। ध्रौव्य भी उत्पाद-व्यय के साथमें होनेवाली एक पर्याय है। ध्रौव्य भी
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