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________________ पुरुषार्थसिद्धपाय ] में एक दो मील जानेपर जहाजका मस्तूल कमती दीखने लगता है इसलिए सिद्ध होता है कि पृथ्वी ढालू होती गई है इसीलिये जहाज उस ढालू पृथ्वी में छिपता जाता है, यह युति पृथ्वीको गोल माननेवालोंके सबसे प्रबल समझी जाती है परंतु सिवा भ्रमबुद्धिके और कुछ नहीं हैं, इसप्रकार मस्तूलका कमंती दीखना सीधी जमीनमें भी होता है, अन्यथा पृथ्वीको ठोक पैमाने से मापकर समतल रखकर मील दो मील दूर पर खड़े होकर देखने से वहां भी मस्तूलका कुछ भाग ही दृष्टिगत होता है, सब मस्तूल नहीं दीखता । इसका कारण केवल दृष्टिदोष है, दृष्टिका स्वरूप ही यह है कि वह दूर स्थित पदार्थों को यथार्थरूपमें कभी नहीं जान सकती, यदि समुद्र में पृथ्वीको ढालू मानकर ही मस्तूलका कुछ भाग दीखना माना जाय तो फिर उस जहाजका फोटो लेनेवाले पूरे जहाजका फोटो उतर आना स्वीकार करते हैं वह बात कैसे बनेगी ? कारण उनके कथनानुसार पृथ्वी ढालू होने से जहाजका बहुभाग नीचे चला जायेगा फिर फोटो पूरे जहाज का नहीं आना चाहिये परंतु वह आता है । ऐसी अवस्थामें सिवा दृष्टिदोषके और कुछ नहीं कहा जा सकता । दूसरी युक्ति गोल माननेवालोंकी ओरसे यह दी जाती है कि मनुष्य जहांसे गमन करता है सीधा सामने चले जानेसे घूमकर वहीं आ जाता है जहांसे चला था, यदि पृथ्वी गोल न हो तो घूमकर वहीं कैसे आ सकता है ? यह भी कोरा भ्रम है जिसे सीधा घूमकर वहीं आना बताया जाता है वह सीधा गमन नहीं है किंतु वह बगलू-चक्र गमन है । यदि वह सीधा गमन हो तो क्या पृथ्वीकी प्रदक्षिणा मनुष्य पूरी कर डालता है ? क्या पृथ्वीका परिमाण कुल इतना ही है जिसे कुछ कालमें ही मनुष्य पूरा कर डालता है ? यह सब भ्रामकबुद्धि पूर्ण कल्पना है । यदि पृथ्वीको गोल भी माना जाय तो प्रश्न होता कि जिसप्रकार पाश्चात्य विद्वान् पूर्व पश्चिम घूम आना बतलाते हैं उसीप्रकार क्या कोई पुरुष आज तक उत्तर दक्षिण भी गया हैं ? और क्या नीचे Jain Education International [ ४० १ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001104
Book TitlePurusharthsiddhyupay Hindi
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1995
Total Pages460
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Principle
File Size11 MB
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