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________________ पुरुषार्थसिद्धयुपाय ] [३८६ एक रात्रि, पक्ष, मास, वर्ष, इनमें होनेवाले पापोंकी आलोचना करना, ऐर्यापथिकईर्यापथद्वारा और उत्तमार्थ अर्थात् समस्त दोषोंकी आलोचना करते हुए शरीर छोड़ने में समर्थ होकर चारों प्रकारके आहारका सर्वथा सदाके लिये त्याग कर देना । इन सात भेदोंसे प्रतिक्रमण में उत्तरोत्तर विशेषता है । चाकी और भी जो भेद हैं दीसासे लेकर सन्यास मरणके ग्रहणकालपर्यंत जितने भी अतीचार दोष हैं वे इन्हीं ऊपर कहे हुए भेदोंमें अंतर्भूतहो जाते हैं। प्रतिक्रमणके भी नाम स्थापना द्रव्य क्षेत्र काल भावके भेदसे छह भेद हैं । पापयुक्त नाम, रागोत्पादक स्थापना, सावद्य-हिंसादि युक्त भोज्यादि वस्तुका उपयोग करनारूप द्रव्य इनका प्रतिक्रमण अर्थात् दोष निवृत्ति करना, क्षेत्र और कालसंबंधी होनेवाले दोषोंकी निवृत्ति करना, राग द्वेषरूप भावों की निवृत्ति करना-भावप्रतिक्रमण इसप्रकार छह भेद हैं । इस प्रतिक्रमण विधिमें जो पापोंकी आलोचना करने में तत्पर साधु हैं वह तो प्रतिक्रमणक अर्थात् प्रतिक्रमण करनेवाला कहलाता है, जिन दोषों की आलोचना की जाती है वे प्रतिक्रम्य अर्थात् प्रतिक्रमण करने योग्य वस्तु कहलाती है । तथा जो पापोंकी निवृत्ति करना है वह प्रतिक्रमण अर्थात् प्रतिक्रिया कहलाती है । प्रतिमक्रण करनेवाले साधुको या तो सावधानउपयुक्र चित्तसे स्वयं अपने किये हुए पापोंकी निंदा गर्दा आलोचनाका पाठ करना चाहिये अथवा आचार्यादिके द्वारा सावधान चित्तसे सुनना चाहिये । हां! मैंने यह दुष्ट अपराध किया है इसप्रकार चित्तमें भावना करना निंदा कहलाती है । उन्हीं दोषोंकी गुरुकी साक्षीसे आलोचना करना गर्दा कहलाती है । तथा गुरुसे ही निवेदन करना आलोचना कहलाती है । इसप्रकार पापों की निंदा गर्दा आलोचना करनेसे कर्मों की निर्जरा होती है । जिसप्रकार साधु-मुनि दोषोंकी आलोचना करके कर्मों की निर्जरा एवं आत्मीय शुद्धि करते हैं उसी प्रकार गृहस्थको भी अंशांशरूपसे करना चाहिये। प्रत्याख्यानका स्वरूप इसप्रकार है-जो रत्नत्रयमें बाधा लानेवाले Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001104
Book TitlePurusharthsiddhyupay Hindi
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1995
Total Pages460
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Principle
File Size11 MB
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