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________________ [ ३८२7 पुरुषार्थसिद्ध य पाय] समय अंतमुहूर्त है, बीचका सब समय मध्यम है । तथा भाविकालमेंआगामी कालमें सामायिक शास्त्रोंको जाननेवाला जीव भाविनोआगम द्रव्य सामायिक कहलाता है। तद्वयतिरिकके दो भेद हैं-कर्म, नोकर्म । सामायिक में स्थित जीवके जो तीर्थंकर शुभ नाम शुभ गोत्र सातावेदनीय आदि शुभ कर्मोंका संचय होता है वह नोआगम द्रव्यकर्म तद्वयतिरिक्त नामका द्रव्यसामायिक है। नोकर्म तद्वयतिरिक द्रव्यसामायिक के फिर तीन भेद हैं- सचित्त , अचित्त,मिश्र । उनमें सचित्त पढ़ाने वाले उपाध्याय कहे जाते हैं । अचित्त पुस्तक कही जाती है और मिश्रमें दोनोंका ग्रहण होता है । यह सब नो कर्म हैं जो उस कार्यमें सहायक हो वहनो कर्म कहा जाता है । क्षेत्रसामायिक वह है कि-सामायिक परिणत जीवने जिस स्थानका ग्रहण कर रक्खा है जैसे-चम्पापुर , पावापुर , गिरनार , सोनागिरि , अंतरीक्ष पार्श्वनाथ , श्री सम्मेदशिखर आदि । जिस कालमें सामायिकमें आत्मा परिणत होती है वह उसका काल सामायिक है। उसके तीन भेद हैं - प्रातःकाल , मध्यान्हकाल और सांयकाल । जो वर्तमानपर्यायसे विशिष्ट पदार्थ है उसका सामायिक भावसामायिक कहा जाता है । वह भी दो प्रकार है-आगमभाव सामायिक , नोआगमभाव सामायिक । सामायिक के वर्णन करने वाले शास्त्रों को जानने वाला आत्मा जिससमय उन शास्त्रों में उपयोग लगा रहा है उस समय वह आगमभावसामायिक कहा जायेगा । नो आगमभाव सामायिक के भी दो भेद हैं-उपयुक्त और तत्परिणत । सामयिक शास्त्रों के विना सामायिक के अर्थों में जो उपयुक्त है वह नोआगम उपयुक्त भाव सामायिक है । तथा जो रागद्वेष से रहित भाव से परिणत आत्मा है वह तत्परिणत नोआगम भाव सामायिक है । इन छहों भेदों में- द्रव्य क्षेत्रादि भेदों में जो भावसामायिक भेद है उसी से मुख्य प्रयोजन है । भावसामायिक शब्दका निरुक्तिपूर्वक अर्थ यह है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001104
Book TitlePurusharthsiddhyupay Hindi
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1995
Total Pages460
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Principle
File Size11 MB
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