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पुरुषार्थसिद्धय पाय ]
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जाय, उस समय किसी कार्य की व्यग्रतासे स्वयं तो दूसरे कार्य में लग जाय
और किसी अन्य पुरुषको कह दे कि इन्हें आहार दे दो या में कार्यके लिये जाता हूँ तुम दे देना, परदातृव्यपदेश अतीचार कहा जाता है । इससे
आहारदान में उपेक्षाभाव सिद्ध होता है, कारण जहां भक्तिका तोवू संचार होता है वहांपर फिर हरएक कार्य अपने हाथसे ही करने की इच्छा होती है । जो घरपर आये हुए अतिथिको छोड़कर स्वयं दूसरे कार्य में लगता है । उसकी भक्ति कहांतक मंद है यह बात स्पष्ट है, भक्तिमें त्रुटि रहना ही यहांपर अतीचार लिया गया है । कारण भक्तिमें त्रुटि आती है परंपरा यदि गृहस्थ एक दूसरे पर धर्मकार्य सौंपता रहेगा स्वयं अन्यान्य कार्य करेगा तो धार्मिक कार्योके मार्ग रुकने की पूरी पूरी संभावना है इसलिये उपयुक्त दोष अतीचारमें लिया गया है । यह धार्मिक शिथिलता एवं भकिभावकी उपेक्षा, दान देनेवाले गृहस्थमें होती है इसलिये उसीका यह अतीचार है।
दूसरा सचित्त निक्षेप अतीचार है जब कि साधु सचित्त पदार्थ के त्यागी होते हैं तब उन्हें आहारदान देनेवालेको बहुत विचारकर अतीचाररहित शुद्ध आहार देना चाहिये, यदि आहारमें कोई प्रकारकी अशुद्धि है तो उसका दोषी देनेवाला है लेते समय यदि उन साधुओंके दृष्टिगोचर वह अशुद्धि आ जायगी तब तो वे आहार छोड़ देंगे नहीं आवेगी तबतक ही लेते रहेंगे परंतु उनके ध्यानमें अशुद्धिका परिज्ञान हो या नहीं हो दाता जो कुछ भी अशुद्धि रखता है उसके लिये वह दोषी इसलिये सचित्तनिक्षेप किसी पत्तल आदि सचित्त वस्तुमें रखकर आहार देना अतीचार है।
इसीप्रकार सचित्त वस्तुसे ढका हुआ आहार देना यह तीसरा अती. चार है । कालका उल्लंघन करदेना चौथा अतीचार है । साधुओंका समय प्रातःकाल दस बजेसे साढ़े ग्यारह बजे तक होता है और जिनका एकबारमें कहीं आहार नहीं हुआ हो तो वे तपस्वी सायंकाल भी आहारको
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