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________________ पुरुषार्थसिद्धय पाय ] [ ३२१ होता हो, जैसे उष्णकाल होनेपर भी आहारमें मिरच आदि उष्ण पदार्थ ही साधुओंको दे दिया तो उससे उनके कंठमें अग्नि जलने लगेगी, अथवा ऐसा पदार्थ दे दिया जिससे उन्हें शौच जानेकी बाधा हो जाय इसलिये आहारदान देते समय उन साधुओंकी शरीररक्षाकी हरप्रकारसे सुविधा देखना चाहिये । ऋतुका विचार भी रखना चाहिये, उष्णकालमें शीतलपदार्थ देना चाहिये, शीतकालमें उष्ण देना चाहिये । यह भी देखना चाहिये कि ये साधु महाराज कितने दिनसे उपवास धारण करनेवाले हैं, यदि उन्हें अधिक दिन निराहारसे बीत गए हैं तो उन्हें कोई तरल पदार्थ देना चाहिये जिससे उनके गलेमें कवलके निगलनेसे दर्द न हो, जिस पदार्थसे बाधा पहुंचनेका भय न हो, जिससे शरीरमें कोई पीड़ा न खड़ी हो जाय, ऐसा ही पदार्थ देना चाहिये । जो पदार्थ तप करनेमें एवं स्वाध्याय करने में सहायता देनेवाला हो वही देना चाहिये जैसे बादाम, सरबत, दूध, घी, छाछ, इक्षुरस, भात इलायची आदि पदार्थ देने चाहिये, जो सात्विक हों, मादक न हों, शिरमें ठंडक रखनेवाले हों, शरीरमें शांति पहुंचानेवाले हों, किसीप्रकारका क्किार नहीं लानेवाले हों तथा जिनके सेवनसे उनका चित्त तप और स्वाध्यायमें विशेषकालतक उपयुक्त बना रहे अर्थात् बिना किसी विघ्न बाधाके उन कार्यों में प्रवृत्ति बनी रहे, उन्हीं वस्तुओंका दान देना विवेकशील श्रावकका परम कर्तव्य है । कारण आहारदान शरीररक्षाके लिए है और शरीरका टीक रहना धर्मसाधनकी सहायता है । शरीरमें बाधा पहुंचनेसे-किसी प्रकारका कष्ट होनेसे धर्मध्यानमें भी बाधा पहुंचती है इसलिए शरीरमें कोई कष्ट या बाधा न हो इस बातका ध्यान श्रावकको रखना चाहिए । इसके सिवा सम्यग्ज्ञानवर्धक शास्त्र उन्हें देना चाहिये, संयमकी रक्षा करने वाले-पीछी कमंडलु भी आवश्यकतानुसार उन्हें दे देना चाहिये । पीछी कमंडलु संयमकी रक्षाके अंग हैं बिना पीछीके जीवरक्षा नहीं की जा सकती, . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001104
Book TitlePurusharthsiddhyupay Hindi
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1995
Total Pages460
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Principle
File Size11 MB
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