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________________ २६२ ] [ पुरुषार्थसिय पाय अन्वयार्थ-(भूखननवृक्षमोटनशाड्वलदलनांबुसेचनादीनि ) पृथ्वीको खोदना, वृक्षों को उखाड़ना, घास आदिको खूदना या नष्ट भ्रष्ट करना, जलको फेंकना, इन कार्योको (च ) और ( दलफलकुसुमोच्चयान् अपि ) पत्ते, फल, फूल इनके ढेरोंको भी ( निःकारणं न कुर्यात् ) बिना कारण नहीं करना चाहिये। विशेषार्थ-बहुतसे पुरुष प्रमादमें बैठे बैठे सुस्तीमें आकर वृक्षोंको उनकी डालियोंको उखाड़ देते हैं, पृथ्वीको खोदते रहते हैं, बगीचामें बैठे हैं वहांकी घासको ही तोड़ रहे हैं, किसी नदी या तालके किनारे बैठकर बिना कारण पानीको ही इधर उधर फेंक रहे हैं, कहीं रास्तेमें चलते हुये वृक्षोंके पत्ते, फल फूलोंको तोड़ तोड़कर इकट्ठ ढेर लगा रहे हैं, ये समस्त कार्य बिना प्रयोजन किये जाय तो सिवा जीववध होनेके क्या लाभ हो सकता है ? वृक्षादि-पुष्पादिके उखाड़नेसे, पृथ्वीके खोदनेसे, पानीके फैलानेसे स्थावरहिंसा होनेके सिवा उनके आश्रय रहनेवाले त्रस जीवोंका भी घात होता है, इसलिये ऐसे प्रमादाचरणरूप अनर्थदंडको कभी नहीं करना चाहिये । व्यर्थ ही वनस्पति आदिके आरंभ नहीं करनेका नाम ही प्रमादचर्या-अनर्थदंडत्यागवत है। हिंसादान-अनर्थदण्डव्रत असिधेनुविषहुताशनलांगलकरवालकामुकादीनां । वितरणमुपकरणानां हिंसायाः परिहरेद्यत्नात् ॥१४४॥ अन्वयार्थ-(असिधेनु विषहुताशनलांगलकरवालकामुकादीनां) असि तलवार, धेनु-छुरी, विष-जहर, हुताशन-अग्नि, लागल-हल, करवाल-खड्ग, कामुक-धनुष. आदि शब्दसे कुंत क्रकन मुद्गर पाश-जंजीर कांटा कुश दंडा रस्सा पीजरा कठैरा आदि वस्तुयें ( हिंसाया: उपकरणानां ) हिंसाके उपकरण - सामग्री हैं इनका ( वितरणं ) दूसरोंको देना ( यत्नात् परिहरेत् ) प्रयत्नपूर्वक बंद कर देना चाहिये ।। ___विशेषार्थ-बहुतसे पुरुष तलवार आदि वस्तुओंको दूसरोंको देते फिरते हैं, बहुतसे पशुओंको मारने बांधनेवाली चीजें-पींजरा कठैरा आदि बांटते हैं अथवा मंगेनू दे देते हैं ये सब चीजें सिवा दूसरे जीवोंको कष्ट पहुंचाने के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001104
Book TitlePurusharthsiddhyupay Hindi
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1995
Total Pages460
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Principle
File Size11 MB
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