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पुरुर्थषा सिद्धध पाय]
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आरंभ एवं अ
उपदेश देना
। दुःख पहुंचष्ट
है वह सेवावृत्ति नहीं कही जाती, उसे वैयावृत्यि कहते हैं । इस चैयावृत्ति की अपार महिमा है, इस प्रकारकी सेवा करनेवालोंकी आत्मा तो अत्यन्त गौरवशाली एवं समुन्नत होती है । सेवावृत्ति आजीविकासे संबंध रखती है। जैसे-कि नाई धोबी आदि करते हैं। नानातरहकी कारीगरीसे आजीविका चलाना शिल्पवृत्ति है जैसे सुनार लुहार आदि करते हैं । __इसप्रकार विद्या, वाणिज्य, मषी, कृषि, सेवा और शिल्प, इन मार्गों के द्वारा जो आजीविका करनेवाले पुरुष हैं उन्हें कभी भी पापबंधका उपदेश नहीं देना चाहिये । क्योंकि ये समस्त बातें सुतरां आरंभजनित हिंसाके करानेवाली हैं, फिर उनके विषयमें अधिक आरंभ एवं अधिक हिंसाका बढ़ानेवाला निकृष्ट उपदेश देना जैसे कि-इस मंत्रसे अमुक व्यक्तिको दुःख पहुंच सकता है और तुम्हें अर्थलाभ हो सकता है, इस मंत्रसे अमुकको रोगग्रसित बना दो फिर तुम्हीं उसका इलाज करके अर्थलाभ कर सकते हो, इस देशमें पशु कमती हैं दूसरे देशोंसे लाकर यहां बिक्री करो अधिक लाभ होगा, वधिक लोगोंको यह उपदेश देना कि तुम अमुकदेशसे पशु ले आओ, वहां थोड़े मूल्यमें मिलेंगे। किसीसे कहना कि यहां नौकर नौकरानी अधिक पाये जाते हैं इन्हें यहांसे थोड़ा द्रव्य देकर ले लो और परदेशमें जहां जरूरत है-दक्षिण , अफ्रीका आदि कुलीप्रथा रखनेवाले स्थानोंमें बहुत द्रव्य लेकर पहुंचा दो । किसानोंसे कहना कि तुम पृथ्वीको खूब खोदो, वहांकी पृथ्वी उपजाऊ है, आसपासके वृक्ष उखाड़ दो, घास आदि व्यर्थकी वनस्पतिओंको जला डालो इत्यादि प्रकार से हिंसाको वढ़ानेवाले आरंभका उपदेश पापोपदेश नामा अनर्थदंड है। उसका त्याग कर देना पापोपदेश-अनर्थदंडव्रत है ।
__ पापचर्या अनर्थदंडव्रत भूखननवृक्षमोटनशाड्वलदलनांबुसेचनादीनि । निःकारणं न कुर्याद्दलफलकुसुमोच्चयानपि च ॥१४३॥
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