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________________ पुरुषार्थसिद्धय पाय] [ २८५ ली थी अब देशव्रतमें वह उस बंबईसे भी कुछ कालके लिये कमक्षेत्र रखलेता है, जैसे दो महीना या एक महीनाके लिये मैं मनवाड़ या भुसावलसे आगे नहीं जाऊंगा और न कोई संबंध उससे आगे उतने काल तक रक्खूगा । इसीप्रकार जो जो मर्यादायें दिग्नतमें ली जाती हैं, देशवनमें उनसे भी अधिक घटाई जाती है, इतना विशेष है कि यह घटना किसी समयविशेषके लिये ही होती है, जिसप्रकार कि मैं एक घंटा अपने बगीचेसे बाहर नहीं निकलूगा, एक दिन अमुक गलीसे बाहर नहीं बढ़ेगा, एक सप्ताह आधे गांवतक ही अपना प्रयोजन रक्खूगा, एक महीना या एक वर्षमें बारह कोशसे ( तीन योजन ) आगे किसी दिशामें नहीं जाऊंगा। इसप्रकार जो थोड़े थोड़े समयके लिए प्रतिदिन या महीना या वर्ष दिनमें जो मर्यादा किसी किसी क्षेत्र विशेष तकके लिये कर ली जाती है उसे देशव्रत कहते हैं । दिग्वतमें और देशवतमें इतना भेद है कि दिग्वत एक बार किया जाता है और वह सदाके लिये-जीवनपर्यंत नियत हो जाता है, उसमें काल बढ़ नहीं सकता है और न क्षेत्र ही बढ़ सकता है परंतु देशवत प्रतिदिन किया जाता है, उसकी मर्यादा दिग्वतमें नियत क्षेत्रकालके भीतर ही की जाती है और एक दिन कम तो दूसरे दिन अधिक भी की जा सकती है भावार्थ-दिग्वत व्यापक होता है देशवत व्याप्य होता है, अर्थात् दिग्वतकी मर्यादाका क्षेत्र विशाल होता है, देशवतकी मर्यादाका क्षेत्र उसके भीतर ही होता है बाहर नहीं । इस देशवतके पालनेसे अहिंसावतका पालन अच्छी तरह विशेषता से होता है कारण दिग्वतमें जितनी मर्यादा की जाती है उसके भीतर तो दिग्वती त्रसस्थावर हिंसाका आरंभादिक करता ही रहता है परंतु देशवत में उस दिग्वतके भीतर भी नियतकाल तक मर्यादा लेकर देशवती हिंसा से बच जाता है। इसलिये वह उस कालमें निर्मलबुद्धिका धारी अर्थात् विशुद्धपरिणामवाला बनजाता है, तथा विशेषतासे अहिंसाव्रतका पालन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001104
Book TitlePurusharthsiddhyupay Hindi
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1995
Total Pages460
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Principle
File Size11 MB
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