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________________ पुरुषार्थसिद्धय पाय ] [२७१ ___ धन धान्यादि भी कम करने उचित हैं योपि न शक्तस्त्यक्तुं धनधान्यमनुष्यवास्तुवित्तादि। सोपि तनूकरणीयः निवृत्तिरूपं यतस्तत्त्वं ॥१२॥ अन्वयार्थ-[ यः अपि ] जो कोई भी [ धनधान्यमनुष्यवास्तुवित्तादि ] धन, धान्य, मनुष्य, घर, द्रव्य आदि [ त्यक्तु ] छोड़ने केलिये [ न शक्तः ] नहीं समर्थ है [ सोपि ] वह परिग्रह भी (?) [ तनूकरणीयः ] कम करना चाहिये [ यतः ] क्योंकि । तत्वं निवृत्तिरूपं ] तत्त्वस्वरूप निवृत्तिस्वरूप है । ___ विशेषार्थ-जिन पदार्थो से अधिक ममत्व है, जिन्हें छोड़नेमें यह पुरुष असमर्थ है, उन्हें भी कम करना चाहिये कारण आत्माका निज स्वरूप अन्य सब पदार्थों से भिन्न है इसलिये वह सभी प्राप्तकिया जा सकता है जब कि आत्मा जहां तक हो पर पदार्थों का त्याग करता चला जाय । जितने अंशमें पर पदार्थ घटाया जा सके उतना घटाना चाहिये । जिस अवस्थामें पर पदार्थों का संबंध आत्मासे नहीं रहता वही आत्मतत्त्वका निज रूप है। रात्रिभोजनका परित्याग रात्रौ भुजानानां यस्मादनिवारिता भवति हिंसा । हिंसाविरतैस्तस्मात्त्यक्तव्या रात्रिभुक्तिरपि ॥१२॥ अन्वयार्थ ( यस्मात् ) जिस कारण ( रात्रौ भुजानानां ) रात्रिमें भोजन करनेवालोंके । ( अनिवारिता हिंसा भवति ) अनिवार्य हिंसा होती है ( तस्मात् ) इसलिये ( हिंसाविरतः ) हिंसासे विरक्त होनेवाले पुरुषोंको । रात्रिभुक्तिः अपि ) रात्रि भोजन भी ( त्यक्तन्या ) छोड़ देना चाहिये। विशपार्थ-भोजन शरीर रक्षाके लिये आवश्यक है, वह करना ही होगा, परन्तु दिनमें भोजन करनेसे मनुष्य जीवहिंसासे बच सकता है क्योंकि दिन में यत्नाचारसे निरीक्षणपूर्वक भोजनका ग्रहण होता है। रात्रिमें नेत्रंद्रियका तेज कम हो जानेसे यत्नाचारका पलना सुतरां अशक्य है इसलिये रात्रिमें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001104
Book TitlePurusharthsiddhyupay Hindi
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1995
Total Pages460
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Principle
File Size11 MB
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