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________________ पुरुषार्थसिद्धय पाय } पूर्वक- कषायभावों से अर्थात् दूसरेका द्रव्य हड़प लेनेके भावों से ले लेना चोरी कहलाती है । वह चोरी भी हिंसा ही है, कारण जिप्रसकार हिंसा में प्राणियोंके प्राणोंका अपहरण किया जाता है उसीप्रकार चोरीमे भी प्राणोंका अपहरण किया जाता है । प्राणोंका भेद दो कोटिमें बांटा गया है - एक भावप्राण दूसरा द्रव्यप्राण । आत्मामें दुःख होना भावप्राणों का घात है और शरीर के अंग उपांगोंका घात द्रव्यप्राणोंका घात है, इसके सिवा धन धान्य आदि वाह्यपरिग्रह भी वाह्यप्राण कहलाते हैं । इनके चुराये जानेसे संसारी मोही जीवके प्राणोंमें तीव्र आघात होता है । यहांतक कि बहुतसे मनुष्य प्राणोंकी परवा नहीं करते किंतु धनकी रक्षामें सर्वस्व नष्ट करने के लिये तैयार रहते है ऐसी अवस्थामें द्रव्यके चोरी चले जानेसे उनकी आत्मामें बहुत ही दुःख होता है । इसलिये चोरी करनेवाला अपने प्राणोंका तो घात करता ही है क्योंकि आत्माका तो स्वभाव शुद्ध अचौर्यभाव है उसका घात होकर चौर्यभाव विभाव-विकारी भावका संचार होता है । साथ ही वह जिसका द्रव्य चुराता है उसके प्राणोंका भी घात करता है इसलिये चोरी करना भी हिंसा है । [ २४७ wwww^^^^^^^ धनादि वाह्यप्राण हैं अर्था नाम य एते प्राणा एते बहिश्चराः पुंसा | 'हरति स तस्य प्राणान् यो यस्य जनो हरत्यर्थान् ॥१०३॥ अन्वयार्थ – [ ये एते अर्था नाम ] जितने भी धन धान्य आदि पदार्थ हैं [ एते पुसां बहिश्चरा प्राणाः ] ये पुरुषोंके वाह्यप्राण हैं । [ यः जनः ] जो पुरुष [ यस्य अर्थान् हरति ] जिसके धन धान्य आदि पदार्थों को हरण करता है [स: ] वह [ तस्य प्राणान् हरति ] उसको प्राणोंका नाश करता है । C विशेषार्थ — जो पुरुष जिस पुरुषका रुपया पैसा गोधन सुवर्ण वर्तन आदि द्रव्य चुराता है वह उसके अंतरंग प्राणोंका भी घात करता है, क्योंकि धनादि सम्पत्ति के चले जानेसे मोहवश उसके आत्मामें तीव्रतम कष्ट होता है । १ अपहरति यस्तदर्थान् स तु तत्प्राणान् समाहरति" यह पाठ पं० गिरिधर मिश्रकृत संस्कृतटीका For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.001104
Book TitlePurusharthsiddhyupay Hindi
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1995
Total Pages460
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Principle
File Size11 MB
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