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________________ २४० ] [ पुरुषार्थसिद्धय पा [ तत् द्वितीयं अनृतं ] वह दूसरे प्रकारका झूठ है [ यथा अस्मिन् घटः अस्ति ] जिसप्रकार इस जगह घट हैं । विशेषार्थ - जहांपर जो वस्तु नहीं है वहां पर उसे बतलाना यह दूसरा असत्यका भेद है । जिस जगह घड़ा नहीं रक्खा है किसीके यह पूछने पर कि इस जगह घड़ा है या नहीं ? यह उत्तर देना कि इस जगह घड़ा रक्खा है । यह दूसरे प्रकारका झूठ है । तीसरे प्रकारका झूठ वस्तु सदपि स्वरूपात्पररूपेणाभिधीयते यस्मिन् । अनुतमिदं च तृतीयं विज्ञेयं गौरिति यथाऽश्वः ॥ ६४ ॥ अन्वयार्थ – [ यस्मिन् ] जिस वचन में [ स्वरूपात् वस्तु सत् अपि ] अपने स्वरूपसे वस्तु उपस्थित है तो भी [ पररूपेण अभिघीयते ] परस्वरूपसे कहा जाता है [ इदं तृतीयं अनृत विज्ञयं ] यह झूलका तीसरा भेद समझना चाहिये [ यथा गौ अश्वः इति ] जिसप्रकार गौको घोड़ा कह देना । विशेषार्थ प्रत्येक वस्तु अपने स्वरूपसे ही अपनी सत्ता रखती है, परस्वरूपसे वह अपनी सत्ता नहीं रखती, फिर भी किसी वस्तुको परस्वरूप से कहना भी झूठ है । जैसे घरमें गौ बैठी हुई है, किसीके पूछनेपर उत्तरमें कहना कि हमारे घरमें घोड़ा बैठा हुआ है। इस वचनमें वस्तुका सद्भाव तो स्त्रीकार किया गया है परन्तु अन्यका अन्यरूप कहा गया है । गौ सदा अपने गोत्वस्वरूपसे ही कही जा सकती है क्योंकि गोत्व ही उसका निजरूप है, वह घोड़ारूपसे नहीं कही जा सकती। क्योंकि घोड़ा अपने घोटकत्वधर्म से कहा जाता है अर्थात् जो सवारी ले जानेवाला, युद्ध में काम आनेवाले, सींगरहित गदहा आदि पशुओंसे भिन्न घोड़ा संज्ञावाला प्रसिद्ध पशु है, वही घोड़ा कहा जाता है । लोकमें गौ भी प्रसिद्ध है, गौको गौ कहना घोड़ेको घोड़ा कहना यह सत्य वचन है । इस कथन में वस्तुस्वरूप ज्योंका त्यों कहा गया है परन्तु गौको घोड़ा बतलाना अथवा घोड़ेको गौ बतलाना Jain Education International - For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001104
Book TitlePurusharthsiddhyupay Hindi
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1995
Total Pages460
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Principle
File Size11 MB
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