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________________ २०२ ] [पुरुषार्थसिद्धय पाय इसलिये यहांपर बिना हिंसा किये भी हिंसाका फल मिल गया । इन ऊपर कहे हुये चार भंगोंका जो निदर्शन किया गया है वह परिणामोंकी विचित्रताको सूचित करता है, जीव चाहे हिंसा करै या न करे, पीछे करै या पहले करै या उसी समय करे कुछ भी हो परन्तु जीवके जिससमय जैसे परिणाम होंगे उन परिणामोंसे जैसे उसने कर्म बांधे होंगे, समय पाकर वे कर्म उदयमें आकर उसे वैसा फल अवश्य देंगे। हिंसाका फल जीवको भावोंके अनुसार मिलेगा चाहे दूसरे जीवका उसके द्वारा वध हो, चाहे न हो । अर्थात् दूसरे जीवकी वह हिंसा करै या न करै यदि उसके भावोंमें हिंसारूप प्रवृत्ति है तो उसे हिंसा करनेका फल अवश्य मिलेगा। _ हिंसा कर्ता एक, फल भोक्ता अनेक एकः करोति हिंसां भवंति फलभागिनो बहवः । बहवो विदधति हिंसां हिंसाफलभुग्भवत्येकः॥५५॥ अन्वयार्थ ( एकः ) एक जीव ( हिंसा करोति ) हिंसा करता है ( फलभागिनः ) फलके मागी ( बहवः भवंति ) बहुत होते हैं, (बहवः हिंसां विदधनि ) बहुत जीव हिंसा करते हैं ( हिंसाफलभुक् ) हिंसा के फल का भागी ( एकः भवति ) एक होता है। विशेषार्थ-एक कुटुम्बमें दश पुरुष रहते हों, सभीकी इच्छा और प्रेरणासे उनमेंसे एक पुरुष यदि चोरी करने या जूआ खेलने जाता है तो उसके उस दुष्कृत्यका फल सबोंको भोगना है। यह बात प्रत्यक्ष देखी जाती है कि किसी कुटुम्बमें यदि सभी दुष्ट एवं व्यसनी पुरुष रहते हों तो उनमेंसे किसी एकके अपराधपर सभी पकड़े जाते हैं इसलिये यह बात सुसंगत है कि एक हिंसा करता है फल अनेक पाते हैं । किसी दुष्ट राजाने निरपराध हरिणको शिकार खेलते हुए बंदूकसे मार डाला उसके साथियोंने हृदयसे प्रशंसा की कि वाह महाराज ! आपने खूब किया तो उस हिंसा कृत्यकी सराहनासे राजाके साथ साथ सभी सराहना करनेवाले भी हिंसाके फलके भोगनेवाले हैं कारण उनके परिणाम भी तो हिंसारूप ही हैं इसलिये Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001104
Book TitlePurusharthsiddhyupay Hindi
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1995
Total Pages460
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Principle
File Size11 MB
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