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________________ १६८ ] [ पुरुषार्थसिद्धय पाय ww w उत्पन्न हुए भी ( सम्यक्त्वज्ञानयोः ) सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञानमें ( कारणकार्य विधानं ) कार्य-कारणभाव ( दीपप्रकाशयोः इव ) दीप और प्रकाशके समान ( सुघर्ट ) भले प्रकार घटित होता है। विशेषार्थ-जिसप्रकार, दीपक जिससमय जलाया जाता है उसीसमय उसके जलनेके साथ ही उसका प्रकाश भी उत्पन्न हो जाता है, प्रकाशकी उत्पत्तिमें दीप कारण है, प्रकाश उसका कार्य है, परन्तु दोनों ही एक क्षणमें उत्पन्न होते हैं, उसीप्रकार सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञान दोनों साथ साथ उत्पन्न होते हैं,। दोनोंकी उत्पत्तिका समान काल है। फिर भी दोनोंमें कार्य-कारणभाव है । कहीं कहीं कारण पहले रहता है, कार्य पीछे उत्पन्न होता है । एक कालमें उत्पन्न हुए पदार्थ स्वतन्त्र होते हैं, उनमें परस्पर कार्य-कारणभाव नहीं होता । इसी आशयको लेकर यहां भी शंका उत्पन्न हो सकती है कि 'सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञानका समानकाल है, फिर उनमें कार्य-कारणभाव कैसा ?' उसीका उत्तर यह दिया गया है कि-समानकालमें उत्पन्नहुए पदार्थों में भी कार्य-कारणभाव होता है; जैसे दीप और प्रकाशमें । उसीप्रकार यहां सम्यग्दर्शन और ज्ञानमें समझना चाहिये। सम्यग्ज्ञानका स्वरूप कर्तव्योध्यवसायः सदनेकांतात्मकेषु तत्त्वेषु । संशयविपर्ययानध्यवसायविविक्तमात्मरूपं तत्॥३५॥ अन्वयार्थ– ( सदनेकांतात्मकेषु ) समीचीन अनेकांतस्वरूप ( तत्त्वेषु ) तत्त्वोंमें ( अध्यवसायः ) यथार्थ बोध (कर्तव्यः) प्राप्त करना चाहिये, (तत् ) वही ( संशयविपर्ययानध्यवसाय: विविक्त ) संशय, विपर्यय, अनध्यवसायसे रहित ( आत्मरूपं ) आत्माका स्वरूप है। विशेषार्थ-यहांपर सत् ( समीचीन ) विशेषण दो अर्थों को सिद्ध करता है । एक तो यह कि सत्स्वरूप और अनेकांतस्वरूप तत्त्वोंका मनन करना चाहिये; द्रव्यका लक्षण सत् ( सत्ता) कहा गया है और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.001104
Book TitlePurusharthsiddhyupay Hindi
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1995
Total Pages460
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Principle
File Size11 MB
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