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[ पुरुषार्थसिद्धय पाय wwwmwwwmmmmmmmmmmmmmmmmm.mww.imm अधर्मद्रव्य, कालद्रव्य, जीवद्रव्य, सूक्ष्म पुद्गलवर्गणाएं, आकाशद्रव्य, ये सब जैसे आगम-प्रमाणसे जाने जाते हैं, वैसे हेतुवादसे भी जाने जाते हैं । परन्तु जहां अविनाभावी हेतुका प्रयोग नहीं किया जाता, वहां उनका ज्ञान ठीक ठीक नहीं हो सकता । जहां अविनाभावी हेतुके प्रयोगद्वारा साध्यका ठीक ठीक निश्चय कर लिया जाता है, वहां उस ज्ञानको 'अनुमानप्रमाण' कहते हैं । परोक्षपदार्थों का ज्ञान आगमप्रमाण और अनुमानप्रमाण, इन दो ज्ञानोंसे ही होता है। अनमानज्ञान सदा अविनाभावी हेतुसे ही होता है; इसीलिये वह नियमसे यथार्थ होता है। कभी विपरीत या संदेहात्मक हो नहीं सकता। सच्चे ज्ञानका नाम ही अनमान है । इसीलिये जो सन्देहात्मक ( अन्दाजू ) ज्ञानके लिये अनुमान शब्दका प्रयोग करते हैं अथवा वैसा समझते हैं, वे शास्त्रीयपद्धतिसे विरुद्ध कहनेवाले वा समझनेवाले हैं । अनुमानप्रमाण में सबसे बड़ी बात विचार करनेकी यही होती है कि-जिस हेतुसे विवादकोटिमें लायेगये साध्यकी सिद्धि की जाती है, वह हेतु कभी साध्यको छोड़कर भी रह सकता है ? अथवा सदा साध्यके साथ ही रहनेवाला है ? यदि साध्यको छोड़कर भी रह सकता हो, तो वह अविनाभावी नहीं कहा जा सकता; अतएव वह साध्यका निश्चायक भी नहीं हो सकता । अविनाभावी हेतु उसे ही कहते हैं जो साध्यके बिना नहीं रह सके । वैसे अविनाभावी हेतुके देखनेसे जो साध्यका ज्ञान होगा, वह सदा निश्चयरूप ही होगा । इसीलिये अनुमानप्रमाण यथार्थ होता है । उससे कीहुई पदार्थ-सिद्धि नियमसे यथार्थ होती है।
पांचवाँ परोक्षप्रमाण आगम है सत्यवनाके द्वारा कहेगये वचनसे जो पदार्थ-ज्ञान होता है, उसे ही आगम कहते हैं । सत्यवक्ताको आप्त कहते हैं। प्रधान सत्यवका सर्वज्ञ वीतराग श्रीअर्हतदेव हैं। उनकी दिव्यध्वनिसे जो श्रोताओंको पदार्थका बोध होता है, वह बोध ही आगम कहा
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