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________________ १३८ ] [ पुरुषार्थ सिद्धय पाय 4-ww-~ www यातो सम्यग्दृष्टि पुरुषोंले निःशंकित अंग नहीं पल सकता अथवा सर्वज्ञ सम्यग्दृष्टि ही निशंकित अंगके पालक हो सकते हैं ?' इस प्रश्नका उत्तर इसप्रकार है-अल्पज्ञोंको किप्ती पदार्थमें शंकाका उत्पन्न होना स्वाभाविक बात होनेपर भी उनके निःशंकित अंग पालने में कोई बाधा नहीं आती । कारण शंका होनेमें और शंकितवृत्ति रखने में बहुत अंतर है । शंका तो हर एक पदार्थमें उठाई जासकती है और न शंकाका उत्पन्न करना सम्यक्त्वकी शिथिलताका सूचक है । सम्यग्दृष्टिको भी शंका होती है परन्तु शंका होनेपर भी वह पदार्थस्वरूपपर उसीप्रकार श्रद्धा रखता है जैसाकि जैनशास्त्रोंमें उसका स्वरूप कहा गया है। सम्यग्दृष्टि समझता है कि पदार्थका स्वरूप तो जो जैनागममें लिखा है वही ठीक है, पर मेरी बुद्धि अभी वहांतक नहीं पहुंच सकी है । यह मेरी अल्पज्ञताका दोष है । इसीलिये वह शंका-द्वारा उसका स्वरूप समझनेकी चेष्टा करता है, नहीं समझमें आने पर भी वह उसकी श्रद्धासे रंचमात्र भी विचलित नहीं होता। शंकितवृत्ति उसे कहते हैं कि जो पदार्थस्वरूप जैनागममें बताया गया है वह ठीक है या नहीं, ऐसा उसमें संदेह रखना । संदेह रखनेवाला पुरुष अपनी नासमझीपर ध्यान नहीं देता; किंतु अपनी समझके अनुसार जहांतक वह समझ लेता है उससे आगे समझसे बाहरकै पदार्थस्वरूपको उलटा समझता है, इसीका नाम विपरीत श्रद्धा है; यह मिथ्यादृष्टिका लक्षण है । आजकल अनेक जैन कहलानेवालोंमें भी ऐसी ही विपरीत श्रद्धा अथवा कुबुद्धि देखनेमें आती है । जो सूक्ष्म विवेचन भरतक्षेत्र जंबूद्वीप आदि मध्यलोकका जैनागममें किया गया है वहांतक उनकी बुद्धि जाती नहीं, नहीं जानेका भी कारण यह है कि वे लोकरचनासंबंधी शास्त्रोंका स्वाध्याय तो करते नहीं किंतु प्रारंभसे भूगोलविद्याको पढ़ लेते हैं उसके पढ़नेसे उनके हृदयमें वे ही बातें स्थान पा जाती हैं उसी आधारपर वे अपनी तर्कणाओंको इधर उधर दौड़ाया करते हैं । वे उनकी तर्कणायें सर्वथा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001104
Book TitlePurusharthsiddhyupay Hindi
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1995
Total Pages460
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Principle
File Size11 MB
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