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________________ पुरुषार्थसिद्धय पाय] [८३ mmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm सकता। वे आहारका त्याग करें तो भी नहीं बन सकता, मार्गानुसार उसे ग्रहण करना चाहें तो भी नहीं बन सकता; इत्यादि अनेक ऐसी बातें हैं जो कि देव-तिर्यंच-नारकपर्यायों में पूर्णधर्म धारण करनेमें बाधक हैं। इसीलिये उन पर्यायोंमें अंतरंग परिणाम भी संयमी नहीं बन सकते । देव-नारकपर्यायमें प्रवृत्तिमार्ग अनुकूल न रहनेसे केवल सम्यग्दर्शन धारण किया जा सकता है। तिर्यंचपर्यायमें एकदेश श्रावकवर्म भी धारण किया जा सकता है। परन्तु मनुष्यपर्यायमें रहकर आत्मा अपने जीवनको समुज्वल एवं दुःखोंसे निवृत्त बना सकता है। यदि मनुष्यपर्यायमें आकर भी कुछ धर्मसाधन नहीं हो सका, तो फिर उसका मिलना भी नितांत कठिन है । धर्मसाधनकी योग्यतायें हर-एक जीवको नहीं मिल सकतीं; जिस जीवका सुधार सन्निकट है एवं तीव्र पुण्यकर्मका उदय है, उसे ही धर्म साधनेकी सामग्री मिल जाती है । सामग्री मिलनेपर भी जिसने अविवेक और प्रमादसे उसका कुछ भी सदुपयोग नहीं किया एवं सांसारिक वासनाओंकी चाहनामें ही पर्यायको खो दिया, तो उसके समान अज्ञानी कौन होगा ? ऐसा पुरुष उन्हीं मूखों की श्रेणीमें शामिल है जो देवसे प्राप्त हुए चिंतामणि रत्नको फेंककर कांच बटोरते हैं, अथवा कल्पवृक्षको उखाड़कर विषका वृक्ष बोते हैं, अथवा मदोन्मत्त सुन्दर ऐरावत सरीखे हाथीसे उतरकर गधेपर चढ़ते हैं । सिवा महामूखों के कोई बुद्धिमान इन कार्यों के करने में कभी प्रवृत्त नहीं हो सकता, इसीप्रकार कोई बुद्धिमान ऐसा न होगा जो बड़ी कठिनता एवं दैवयोगसे मिले हुए मनुष्य-शरीर, जैनकुलमें उत्पत्ति, जैनधर्मका परिज्ञान, इन समस्त बातोंको पाकर उनसे लाभ न उठावे, और विषयवासनाओंमें ही पर्यायको पूरा कर दे । इसलिये शक्तिको न छिपाकर धर्मको धारण करना ही मनुष्यजीवनका सार है । सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यकचारित्र इनको ही धर्म कहते हैं; इन तीनोंमें सबसे प्रथम सम्यग्दर्शन प्राप्त करना चाहिये । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001104
Book TitlePurusharthsiddhyupay Hindi
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1995
Total Pages460
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Principle
File Size11 MB
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