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प्रकाशकीय
जैन साहित्य और इतिहासके मर्मज्ञ एवं अनुसन्धाता स्वर्गीय आचार्य जुगलकिशोरजी मुख्तार 'युगवीर' ने अपनी साहित्य - इतिहास सम्बन्धी अनुसन्धान-प्रवृत्तियों को मूर्तरूप देने के हेतु अपने निवास स्थान सरसावा ( सहारनपुर) में 'वीर - सेवा - मंदिर' नामक एक शोध संस्थाकी स्थापना की थो और उसके लिए क्रीत विस्तृत भूखण्डपर एक सुन्दर भवनका निर्माण किया था, जिसका उद्घाटन वैशाख सुदि ३ (अक्षय तृतीया), विक्रम संवत् १९९३, दिनाङ्क २४ अप्रेल १९३६ में किया गया था । सन् १९४२ में मुख्तारश्रीने अपनी सम्पत्तिका 'बसीयतनामा' लिखकर उसकी रजिस्ट्री करा दी थी । 'वसीयतनामा' में उक्त 'वीर-सेवा-मन्दिर' के संचालनार्थ इसी नाम ट्रस्ट की भी उन्होंने योजना की थी, जिसकी रजिस्ट्री ५ मई १९५१ को उनके द्वारा करा दी गयी थी । इस प्रकार आचार्य मुख्तारने वीर- सेवा - मन्दिर व वीर सेवा - मन्दिर ट्रस्ट की स्थापना करके उनके द्वारा साहित्य और इतिहासके अनुसन्धानकार्यको प्रथमतः अग्रसारित किया था ।
स्वर्गीय बा० छोटेलालजी कलकत्ता, स्वर्गीय ला० राजकृष्णजी दिल्ली, रायसाहब ला॰ उल्फत रायजी दिल्ली आदिकी प्रेरणा और स्वर्गीय पूज्य क्षु० गणेशप्रसादजी वर्णी (मुनि गणेशकीर्ति महाराज) के आशीर्वादसे, सन् १९४८ में श्रद्धेय मुख्तारसाहबने उक्त वीरसेवामन्दिरका एक कार्यालय उसकी शाखाके रूपमें दिल्ली में, उसके राजधानी होनेके कारण अनुसन्धान कार्यको अधिक व्यापकता और प्रकाश मिलनेके उद्देश्यसे, रायसाहब ला० उल्फतरायजीके चैत्यालय में खोला था । पश्चात् बा० छोटेलालजी, साहू शान्तिप्रसादजी और समाजकी उदारतापूर्ण आर्थिक सहायता से उसका भवन भी बन गया, जो २१ दरियागंज दिल्ली में स्थित है और जिसमें 'अनेकान्त' (मासिक) का प्रकाशन एवं अन्य साहित्यिक कार्य सम्पादित होते हैं ।
इसी भवन में सरसावासे ले जाया गया विशाल ग्रन्थागार है, जो जैन विद्याके विभिन्न अङ्गों पर अनुसन्धान करनेके लिये विशेष उपयोगी और महत्त्वपूर्ण है । वीर सेवा - मन्दिर ट्रस्ट ग्रंथ प्रकाशन और साहित्यानुसन्धानका कार्य कर रहा है। अब तक इस ट्रस्टसे २० महत्त्वपूर्ण ग्रन्थोंका प्रकाशन हो चुका है । वे ये हैं- १, २. युगवीर - निबन्धावली ( भाग १, २) ३.
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