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२० : प्रमाण-परीक्षा यद्यपि ज्ञान आत्मासे कथंचिद् अभिन्न है फिर भी जिसका कर्ता अभिन्न है वह भी करण होता है। उदाहरणके लिए 'अग्निरोष्ण्येन दहतीन्धनम्' अर्थात् 'अग्नि अपनी उष्णताद्वारा ईंधनको जलाती है'-यहाँ अग्निको लिया जा सकता है। अग्निसे उष्णता यद्यपि कथंचित् अभिन्न है तथापि उनमें कथंचित् परिणाम (उष्णता) और परिणामी ( अग्नि )की भेदविवक्षा होनेसे उष्णताको अभिन्नकर्तृक करण स्वीकार किया जाता है। किन्तु 'जानातीति ज्ञानम्'--'जो जानता है वह ज्ञान है और वह ज्ञान जाननेवाला आत्मा ही है' ऐसी स्वतन्त्रताको विवक्षा करनेपर ज्ञान कर्तासाधन होता है, क्योंकि आत्मा और ज्ञानमें कथंचित् अभेदकी मुख्यतासे आत्माको ही स्वार्थनिश्चयरूप परिणामको प्राप्त करने पर 'ज्ञान' कहा जाता है। ठीक उसी प्रकार, जिस प्रकार उष्णातारूप परिणामको प्राप्त अग्निको 'उष्णता' कह दिया जाता है। इसीसे यह अनुभवसिद्ध व्यवहार होता है कि 'ज्ञानात्मा ज्ञानात्मना ज्ञेयं (ज्ञानात्मानं ) जानातीति'-ज्ञानरूप आत्मा ज्ञानरूप आत्माके द्वारा ज्ञेय (ज्ञानरूप आत्मा) को जानता है । और जिस प्रकार ज्ञानात्मा ही प्रमाता होता है, अज्ञानात्मक आकाशादि प्रमाता नहीं हो सकते, उसी प्रकार ज्ञानात्मा ही प्रमाण है, क्योंकि वही ज्ञानात्मक स्वार्थनिश्चय (प्रमा)में करण है, अज्ञानात्मक सन्निकर्षादि उसमें साधकतम नहीं हो सकते। अतः अज्ञान (सन्निकर्षादि) प्रमाण नहीं है, केवल उपचारसे वह प्रमाण है। अत एव अज्ञानरूप इन्द्रियसन्निकर्ष, लिंग, शब्द आदिके साथ पूर्वोक्त 'अज्ञान प्रमाण नहीं हो सकता' साधन व्यभिचारी नहीं है। न उसका व्यतिरेक (साध्यके अभावमें साधनका अभाव) असिद्ध है, क्योंकि 'सच्चा ज्ञान' रूप साध्यके न होनेपर वस्त्रादिमें 'अज्ञान प्रमाण नहीं हो सकता' रूप साधनका अभाव (व्यतिरेक) निश्चित होनेसे केवलव्यतिरेकिसाधनका भी समर्थन होता है । __ अतः ठीक कहा है कि 'सच्चा ज्ञान ही प्रमाण है, क्योंकि अज्ञान प्रमाण नहीं होसकता, जैसे मिथ्याज्ञान' ।। सम्यग्ज्ञानमें स्वार्थव्यवसायात्मकत्वको सिद्धि ।
उक्त सम्यग्ज्ञान क्या है, इसका विचार किया जाता है_ 'जो अपना और परका व्यवसाय-निश्चय करता है वह सम्यक्ज्ञान है, क्योंकि वह सम्यज्ञान है । जो अपना और परका निश्चय नहीं करता वह सम्यक्ज्ञान नहीं है, जैसे संशय, विपर्यय, अनध्यवसाय ज्ञान । और सम्यग्ज्ञान विचारप्राप्त ज्ञान है, इस लिए वह अपना और परका निश्चय करता हैं', इस प्रकार 'सम्यग्ज्ञानपना' हेतु साध्याविनाभावी होनेसे सभी
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