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प्रस्तावना
१. प्रमाण-परीक्षा
ग्रन्थ- परिचय
( क ) नाम
प्रस्तुत ग्रन्थ प्रमाण-परीक्षा है । इसका यह नाम ग्रन्थकारने ग्रन्थका आरम्भ करते हुए 'अथ प्रमाण-परीक्षा' शब्दों द्वारा स्वयं प्रकट किया है तथा ग्रन्थ के अन्त में दिये गये समाप्ति-पुष्पिकावाक्य में भी वह पाया जाता है | अतः ग्रन्थका उक्त नाम निःसन्देह ग्रन्थकार - प्रदत्त है और ग्रन्थके उद्देश्य एवं प्रयोजनको व्यक्त करता हुआ वह तत्कालीन दार्शनिक स्थितिको प्रदर्शित करता है ।
बौद्ध विद्वान् दिङ्नागने आलम्बनपरीक्षा और त्रिकालपरीक्षा, धर्मकार्तिने सम्बन्ध परीक्षा, धर्मोत्तरने प्रमाणपरीक्षा व लघु प्रमाणपरीक्षा और कल्याणरक्षितने श्रुतिपरीक्षा जैसे परीक्षान्त ग्रन्थ रचे हैं । विविध परीक्षाओं के संग्रहरूप तत्त्वसंग्रह में शान्तरक्षितने भी ईश्वरपरीक्षा, पुरुषपरीक्षा जैसे परीक्षान्त प्रकरण लिखे हैं । आश्चर्य नहीं कि ग्रन्थकार आचार्य विद्यानन्दको अपने इस ग्रन्थका परीक्षान्त नाम रखने में उनसे प्रेरणा मिली हो । विद्यानन्दने आप्तपरीक्षा, पत्रपरीक्षा और सत्यशासनपरीक्षा ये तीन महत्त्वपूर्ण अन्य परीक्षा- ग्रन्थ भी परीक्षान्त नामसे बनाये हैं, जो प्रकाशित हो चुके हैं।
( ख ) भाषा व शैली
यद्यपि दार्शनिक ग्रन्थोंकी भाषा प्रायः जटिल और दुरूह होती है । समासबहुलता भी उनमें विद्यमान रहती है । पर इसकी भाषा में न जटिलता है और न दुख्हता । समासबहुलता भी इसमें नहीं है । छोटे-छोटे वाक्यों द्वारा प्रतिपाद्यका प्रतिपादन है । शैली भी सरल, प्रसादपूर्ण, भव्य और आकर्षक है । ग्रन्थकारके अष्टसहस्त्री (देवागमालङ्कार) और तत्त्वार्थश्लोकवात्तिक ( तत्त्वार्थालङ्कार ) में जैसी गम्भीरता और विस्तार है वैसी
१. ' इति प्रमाणपरीक्षा समाप्ता' - यही ग्रन्थ पृ० ६७ | सनातन जैन ग्रन्थमाला काशीसे प्रकाशित प्रतिका समाप्ति-पुष्पिकावाक्य भी देखिए, यही ग्रन्थ पृ० ६७, टिप्पण ३ ।
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