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________________ आसुहुमं संतुदए, अट्ठ वि मोह विणु सत्त खीणमि। चउ चरिमदुगे अट्ठ उ, संते उवसंति सत्तुदए । ६०॥ उहरंति पमत्तंता, सगट्ठ मीसट्ट वेयआउ विणा। छग अपमत्ताइ तओ, छ पंच सुहुमो पणुवसंतो॥ ६१॥ उइरंति पमत्तंता, सगट्ठ मीसट्ट वेयआउ विणा। छग अपमत्ताइ तओ, छ पंच सुहुमो पणुवसंतो॥ ६१॥ पण दो खीण दु जोगी, णुदीरगु अजोगी थोव उवसंता। संखगुण खीण सुहुमानियट्टिअपुव्व सम अहिया॥ ६२॥ जोगि अपमत्त इयरे, संखगुणा देससासणा मीसा। अविरइ अजोगिमिच्छा, असंख चउरो दुवेणंता॥ ६३॥ उवसमखयमीसोदय-परिणामा दु नव द्वार इगवीसा । तिअभेअ सन्निवाइय, सम्मं चरणं पढमभावे ॥ ६४॥ वीए केवलजुयलं, सम्मं दाणाइलद्धि पण चरणं । तइए सेसुवओगा, पण लद्धी सम्मविरइदुगं ॥ ६५ ॥ अन्नाणमसिद्धत्ता-संजमलेसाकसायगइवेया । मिच्छं तुरिए भव्वा-भव्वत्ताजिअत्तपरिणामे ॥ ६६ ॥ चउ चउगइसु मीसग, परिणामुदएहिं चउ सखइएहिं । उवसमजुएहिं वा चउ, केवलिपरिणामुदयखइए ॥ ६७॥ खयपरिणामि सिद्धा, नराण पण जोगुवसमसेढीए । इय पनर सन्निवाइयभेया वीसं असम्भविणो ॥ ६८ ॥ मोहेव समो मीसो, चउ घाइसु अट्ठकम्मसु य सेसा । धम्माइ पारिणामियभावे खंधा उदइए वि ॥ ६९ ॥ सम्माइ चउसु तिग चउ भावा चउ पणुवसामगुवसंते । चउ खीणापुव्वे तिन्नि, सेसगुणठाणगेगजिए ॥ ७० ॥ संखिजेगमसंखं, परित्तजुत्तनियपयजुयं तिविहं । एवमणंतं पि तिहा, जहन्नमज्झुक्कसा सव्वे ॥ ७१॥ मिच्छं तुरिए मासग, परिणामपरिणामुदयख Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001089
Book TitleKarmagrantha Part 4 Shadshiti Nama Tika
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorAbhayshekharsuri, Dhirajlal D Mehta
PublisherJain Dharm Prasaran Trust Surat
Publication Year1999
Total Pages292
LanguageGujarati, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati, Karma, & Granth-1
File Size15 MB
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