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सम्प्रदाय और कांग्रेस
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छोटे बछड़े को ही पछाड़ दीजिए । कृष्णने तो कंसके मुष्टिक और चाणूर मल्लोंको परास्त किया था, आप ज्यादा नहीं तो गुजरातके एक साधारणसे पहलवान युवकको ही परास्त कर दीजिए । कृष्णाने कंसको पछाड़ दिया था; आप अपने वैष्णव धर्मके विरोधी किसी यवनको ही पछाड़ दीजिए ।" यह जबर्दस्त तर्क था । महाराजने बड़बड़ाते हुए कहा कि इस तरुणीमें कलियुगकी बुद्धि आ गई है । मेरी धारणा है कि इस तरहकी कलियुगी बुद्धि रखनेवाला आज प्रत्येक संप्रदायका प्रत्येक युवक अपने संप्रदाय के शास्त्रोंको सांप्रदायिक दृष्टिसे देखनेवाले और उसका प्रवचन करनेवाले सांप्रदायिक धर्म गुरुओंको ऐसा ही जवाब देगा। मुसलमान युवक होगा तो मौलवी से कहेगा कि तुम हिन्दुओंको काफिर कहते हो, परन्तु तुम खुद काफिर क्यों नहीं हो ? जो गुलाम होते हैं, वे ही काफिर हैं। तुम भी तो गुलाम हो । अगर गुलामीमें रखनेवालोंको काफिर गिनते हो तो राज्यकर्त्ताओंको काफिर मानो; फिर उनकी सोड़में क्यों घुसते हो ? " युवक अगर हिन्दू होगा तो व्यासजीसे कहेगा कि " यदि महाभारतकी वीरकथा और गीताका कर्मयोग सच्चा है तो आज जब वीरत्व और कर्मयोगकी खास जरूरत है तब तुम प्रजाकीय रणांगणसे क्यों भागते हो ? " युवक अगर जैन होगा तो क्षमा वीरस्य भूषणम् ' का उपदेश देनेवाले जैन गुरुसे कहेगा कि " अगर तुम वीर हो तो सार्वजनिक कल्याणकारी प्रसंगों और उत्तेजनाके प्रसंगों पर क्षमा पालन करनेका पदार्थ- पाठ क्यों नहीं देते ? सात व्यसनोंके त्यागका सतत उपदेश करनेवाले तुम जहाँ सब कुछ त्याग कर दिया' है, वहीं बैठ कर इस प्रकार त्यागकी बात क्यों करते हो ? देशमें जहाँ लाखों शराबी बर्बाद होते हैं, वहाँ जाकर तुम्हारा उपदेश क्यों नहीं होता ? जहाँ अनाचारजीवी स्त्रियाँ बसती हैं, जहाँ कसाईघर हैं और मांस-विक्रय होता है, वहाँ जाकर कुछ प्रकाश क्यों नहीं फैलाते ? इस प्रकार आजका कलियुगी युवक किसी भी गुरुके उपदेशकी परीक्षा किये बिना या तर्क किये बिना माननेवाला नहीं है । वह उसीके उपदेशको मानेगा जो अपने उपदेशको जीवन में उतार कर दिखा सके। हम देखते हैं कि आज उपदेश और जीवनके बीच भेदकी दिवाल तोड़नेका प्रयत्न राष्ट्रीय महासभाने किया है और कर रही है । इसलिए सभी सम्प्रदायोंके लिए यही एक कार्य क्षेत्र है ।
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