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________________ धर्म और समाज शास्त्रको मानते रहें, कलहका कारण स्वतः दूर हो जायगा । आज पंथ या समाजमें जिसकी माँग है वह है शक्ति और ऐक्य। यह तत्व उदारता और ज्ञानवृद्धिके बिना संभव नहीं । भिन्न भिन्न शास्त्रोंका अनुसरण करनेवाले भिन्न भिन्न वर्ग और पंथ सिर्फ उदारता और ज्ञानवृद्धिके बलसे ही हिलमिलकर रह सकते हैं। ऐसे बहुत-से पुरुष हैं जो किसी एक शास्त्र या एक पंथके अनुयायी नहीं हैं, फिर भी एकदिल होकर समाज और देशका कार्य करते हैं और ऐसे भी अनेक मनुष्य हैं जो एक ही संप्रदायके शास्त्र मानने पर भी, परस्पर हिलमिलकर कार्य करनेकी बात तो दूर रही, एक दूसरेका नाम भी सुनने के लिए तैयार नहीं । जब तक मानस मलीन हो, परस्पर आदर या तटस्थताका अभाव हो, या तनिक भी ईर्षा हो तब तक भगवान्की साक्षीसे एक शास्त्रको मानने या अनुसरण करनेके व्रतका स्वीकार करनेपर भी, कभी ऐक्य सिद्ध नहीं होगा, शक्ति स्थापित नहीं होगी। यह वस्तु यदि किसीके ध्यानमें नहीं आती है तो कहना चाहिए कि उस व्यक्तिमें इतिहास और मानसशास्त्र समझनेकी शक्ति नहीं है। हमारा समाज और देश क्लेशके भँवरमें फँसा है। वह हमसे अधिक नहीं तो इतनी अपेक्षा तो रखता ही है कि अब अधिक क्लेशका पोषण न हो । यदि हम उदारता और ज्ञानवृद्धिका पोषण करें, तो समाज और देशकी माँगकी पूर्ति की जा सकती है। जैन तत्त्वज्ञानमें अनेकान्त और आचारमें अहिंसाका जो प्रतिपादन किया गया है उसका आशय इतना ही है कि हमें बतौर जैनके आपसमें और दूसरे समाजोंके साथ भी उदारता और प्रेमका व्यवहार करना चाहिए । जहाँ भेद और विरोध हो वहीं उदारता और प्रेमकी आवश्यकता होती है और वहीं वे हमारे अन्तःकरणमें हैं या नहीं, और हैं तो कितने प्रमाणमें हैं इसकी परीक्षा होती है । इसलिए यदि हम जैनत्वको समझते हों तो यह समझना सरल है कि उदारता और प्रेमवृत्तिके द्वारा ही धर्मरक्षा हो सकती हैं, अन्यथा नहीं । शास्त्रकी उत्पत्ति और उसके उपयोगका उद्देश यही है। यदि इस उद्देशकी सिद्धि शास्त्रसे नहीं होती तो वह रक्षण करनेके बदले जहरीले शस्त्रकी तरह भक्षणका कार्य करेगा और शास्त्र अपना गौरव नष्ट करके शस्त्र साबित होगा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001072
Book TitleDharma aur Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi, Dalsukh Malvania
PublisherHemchandra Modi Pustakmala Mumbai
Publication Year1951
Total Pages227
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size13 MB
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