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________________ आस्तिक और नास्तिक जवाबदारियोंका विचार करनेवाला हो । परन्तु कितने ही मनुष्य कुटुम्बमें ऐसे निकल आते हैं जो कमजोरीके कारण अपनी कौटुम्बिक जवाबदारीको फेंककर उसकी जगह बड़ी और व्यापक जवाबदारी लेनेके बदले आलस्य और अज्ञान के कारण अपने कुटुम्ब और अपने समाज के प्रति गैर-जिम्मेदार होकर इधर उधर भटकते रहते हैं । ऐसे मनुष्यों और पहले बताये हुए उत्तरदायी न तपस्वियों के बीच घरसम्बन्धी गैरजिम्मेदारी और घर छोड़कर इच्छापूर्वक घूमने जितनी ही समानता होती है । इस साम्यके कारण उन गैरजिम्मेदार मनुष्यों को उनके रिश्ते के लोगोंने ही तिरस्कारसूचक तरीकेसे या अपनी अरुचि दर्शाने के निमित्त उनको नंगा या नागा ( नग्न ) कहा । इस तरह से व्यवहारमें जब कोई एक जवाबदारी छोड़ता है, दिया हुआ वचन पूरा नहीं करता, अपने सिरपर रखा हुआ कर्ज नहीं चुकाता और किसीकी सुनता भी नहीं, तब, उस हालत में वह तिरस्कार और अरुचिसूचक शब्दों में नंगा या नम कहता है । इस तरह धीरे धीरे पहलेवाला मूल नन शब्द अपने महान् तप, त्याग और पूज्यता के अर्थमेंसे निकलकर सिर्फ गैरजिम्मेवार अर्थ में आकर रुक गया और आज तो वह ऐसा हो गया है कि कोई भी व्यक्ति अपने लिए नंगा शब्द पसंद नहीं करता । दिगंबर भिक्षुक जो बिल्कुल नम होते हैं, उनको भी अगर नंगा कहा जाय, तो वे अपना तिरस्कार और अपमान समझेंगे । लुंचक शब्द भी अपना पवित्र स्थान खो दिया है । कहे हुएका पालन न करे, दूसरों को ठगे, बस इतने ही अर्थ में उसका उपयोग रह गया है। बाबा शब्द तो बहुत बार बालकों को डरानेके लिए ही प्रयुक्त होता है और अक्सर जो किसी प्रकारकी जिम्मेदारीका पालन नहीं करता उस आलसी और पेटू मनुष्य के लिए भी प्रयुक्त होता है । इस तरह भलाई या बुराई, आदर या तिरस्कार, संकुचितता या विस्तृतताके भावको लेकर एक ही शब्द कभी अच्छे, कभी बुरे, कभी आदरसूचक, कभी तिरस्कारसूचक, कभी संकुचित अवाले और कभी विस्तृत अर्थवाले हो जाते हैं । ये उदाहरण प्रस्तुत चर्चा में बहुत काम होंगे। ५५ ऊपर कहे हुए नास्तिक और मिथ्यादृष्टि शब्दोंकी श्रेणीमें दूसरे दो शब्द भी सम्मिलित किये जाने योग्य हैं । उनमें एक ' निन्दव ' शब्द है जो श्वेताम्बर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001072
Book TitleDharma aur Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi, Dalsukh Malvania
PublisherHemchandra Modi Pustakmala Mumbai
Publication Year1951
Total Pages227
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size13 MB
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