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________________ प्रेरणा मिली। उनका मुख्य कार्य तो दार्शनिक ग्रन्थोंका सम्पादन संशोधन और अध्यापन ही था; किन्तु जैन सभाओंमें बोलनेका जहाँ कहीं भी अवसर मिला उन्होंने धर्म-स्वरूपकी मीमांसा करना उचित माना । श्रोता मुख्य रूपसे जैन होते थे, इसलिए दृष्टान्तोंमें उन्हींकी बातोंका आना स्वाभाविक है, फिर भी धर्मका जो तात्त्विक स्वरूप बतलाया गया है वह सर्वजनग्राह्य और सर्वोपयोगी है। कलकत्तेके श्री भंवरमलजी सिंघीने सबसे पहले उक्त लेखोंका संग्रह करनेकी प्रेरणा की थी। उसके बाद जब श्री नाथूराम प्रेमीने स्वर्गीय हेमचन्द्रकी स्मृतिमें प्रकाशित होनेवाली पुस्तकमालामें इसे देनेका प्रस्ताव किया, तब पंडितजीने इसे स्वीकार कर लिया। पंडितजीका स्व० हेमचन्द्रपर विशेष स्नेह था । __पंडितजीने अपने सभी प्रकाशित अप्रकाशित लेखोंकी व्यवस्थाका भार मुझे दे रखा है। मेरी इच्छा थी कि उनके समस्त लेख जैनसंस्कृतिसंशोधन मंडल, काशीकी ओरसे प्रकाशित हों। मंडलने अनुवादके लिए कुछ खर्च भी किया था। अतएव यही निश्चय हुआ कि मंडलकी ओरसे इस संग्रहका प्रकाशन प्रेमीजी करें और तदनुसार यह प्रकाशित हो रहा है । मेरी प्रार्थनापर पूज्य काका कालेलकरने संग्रहको पढ़कर अस्वस्थ अवस्थामें भी कुछ पंक्तियाँ लिख देनेका कष्ट उठाया है, उसके लिए उनका आभार मानता हूँ। इस संग्रहके कई लेख कई मित्रोंने स्वतःप्रवृत्त होकर गुजरातीसे हिन्दी-अनुबाद करके पत्रोंमें प्रकाशित किये थे। अतएव उनका और पत्र-सम्पादकोंका भी मैं आभारी हूँ। . प्रेमीजीने अनुवादका संस्कार किया है। कहीं कहीं तो उनको समूचा बदलना पड़ा है और यह सब उन्होंने बड़े प्रेमसे किया है। इसलिए के भी धन्यवादके पात्र हैं। काशी हिन्दू-विश्वविद्यालय ( -दलसुख मालवणिया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001072
Book TitleDharma aur Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi, Dalsukh Malvania
PublisherHemchandra Modi Pustakmala Mumbai
Publication Year1951
Total Pages227
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size13 MB
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