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________________ ४८ धर्म और समाज - देखते हैं। गृहस्थोंकी ही बात नहीं, त्यागी गिने-जानेवाले धर्मगुरुओंमें भी कर्तव्य-पालनके नामपर शून्य है । तब चार्वाक धर्म या उसके ध्येयको स्वीकार करनेसे जो परिणाम उपस्थित होता है वही परिणाम परलोकको धर्मका ध्येय माननेसे भी नहीं हुआ, ऐसा कोई कैसे कह सकता है ? यदि ऐसा न होता तो हमारे दीर्घदर्शी गिने जानेवाले परलोकवादी समाज में आत्मिक, कोटुम्बिक, सामाजिक और राष्ट्रीय जवाबदारियों के ज्ञान का अभाव न होता । चाहे कर्ज लेकर भी घी पीनेकी मान्यता रखनेवाले प्रत्यक्षवादी स्वसुखवादी चार्वाक हो चाहे परलोकवादी आस्तिक हों, यदि उन दोनोंमें कर्तव्यकी योग्य समझ, जवाबदारीका आत्म-भान और पुरुषार्थकी जागृति जैसे तत्व न हों, तो दोनों के धर्मध्येय सम्बन्धी वादमें चाहे कितना ही अन्तर हो, उन दोनों के जीवन में या वे जिस समाजके अंग हैं, उस समाजके जीवन में कोई अन्तर नहीं पड़ता । बल्कि ऐसा होता है कि परलोकवादी तो दूसरेके जीवनको बिगाड़नेके अलावा अपना जीवन भी बिगाड़ लेता है, जब कि चार्वाकपन्थी अधिक नहीं तो अपने वर्तमान जीवनका तो थोड़ा सुख साध लेता है । इसके विपरीत अगर चार्वाक-पंथी और परलोकवादी दोनोंमें कर्तव्य की योग्य समझ, जवाबदारीका भान और पुरुषार्थकी जागृति बराबर बराबर हो, तो चार्वाककी अपेक्षा परलोकवादीका विश्व अधिक संपूर्ण होनेकी या परलोकवादीकी अपेक्षा चार्वाकपन्थीकी दुनियाके निम्न होनेकी कोई संभावना नहीं है। __धर्मका ध्येय क्या हो? ध्येय चाहे जो हो, जिनमें कर्तव्य और जवाबदारीका भान और पुरुपार्थकी जागृति अधिक है, वे हो दूसरोंकी अपेक्षा अपना और अपने समाज या राष्ट्रका जीवन अधिक समृद्ध या सुखी बनानेवाले हैं । कर्तव्य और जवाबदारीके भान वाले और पुरुषार्थकी जागृतिवाले चार्वाक सदृश लोग भी दूसरे पक्षके समाज या राष्ट्रके जीवनकी बनिस्बत अपने समाज और राष्ट्रका जीवन खूब अच्छा बना लेते हैं, इसके प्रमाण हमारे सामने हैं। इसलिए धर्मके ध्येय रूपमें परलोकवाद, कर्मवाद, या आत्मवाद दूसरे वादोंकी अपेक्षा अधिक संपूर्ण या बढ़ा हुआ है, ऐसा हम किसी भी तरहसे साबित नहीं कर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org |
SR No.001072
Book TitleDharma aur Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi, Dalsukh Malvania
PublisherHemchandra Modi Pustakmala Mumbai
Publication Year1951
Total Pages227
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size13 MB
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