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________________ ४४ धर्म और समाज अब हमें यह देखना है कि व्यवहार में कर्मवादी चार्वाकपन्थीकी अपेक्षा कितना ऊँचा जीवन बिताता है और अपने संसारको कितना अधिक सुन्दर और कितना अधिक भव्य बनाना या रचना जानता है । MAUJA GHALIB यों चर्चा में एक पक्ष दूसरेको चाहे जो कहे, उसको कोई नहीं रोक सकता । किन्तु सिर्फ कहने मात्र से कोई अपना बड़ापन साबित नहीं कर सकता । बढ़े छोटेकी जाँच तो जीवन से हो होती है । चार्वाक -पन्थी तुच्छ दृष्टिको लेकर परलोक नहीं मानते जिससे वे अपनी आत्मिक जवाबदारी और सामाजिक जवाबदारीसे भ्रष्ट रहकर सिर्फ अपने ऐहिक सुखकी संकीर्ण लालसा में एक दूसरे के प्रतिकी सामाजिक जवाबदारियाँ अदा नहीं करते । उससे व्यवहार लँगड़ा हो जाता है । ऐसा हो सकता है कि चार्वाक पंथी जहाँ अपने अनुकूल हो, वहाँ दूसरोंसे सहायता ले ले, मा-वापकी विरासत पचा ले और म्युनिसिपैलिटीकी सामग्रीको भोगने में जरा भी पीछे नहीं रहें, सामाजिक या राजकीय लाभका लेश मात्र भी त्याग न करे | परन्तु जब उन्हीं मान्बापोंके पालने पोषनेका सवाल आवे तब उपेक्षाका आश्रय ले ले । म्युनिसिपालटी के किसी नियमका पालन अपने सिम्पर आ जाय तब चाहे जिस बहानेसे निकल जाय । सामाजिक या राष्ट्रीय आपत्तिके समय कुछ कर्त्तव्य प्राप्त होनेपर पेट दुखनेका बहाना करके पाठशालासे बच निकलने-वाले बालककी तरह, किसी न किसी रोतिसे छुटकारा पा जाय और इस तरह अपनी चार्वाक दृष्टिसे कौटुम्बिक, सामाजिक, राजकीय सारे जीवनको लँगड़ा बनानेका पाप करता रहे। यह है उसकी चार्वाकताका दुष्परिणाम | Jain Education International अब अपनेको पर-लोक-वादी आस्तिक कहनेवाले और अपने आपको - बहुत श्रेष्ठ माननेवाले वर्गकी तरफ ध्यान दीजिए। अगर कर्म-वादी भी अपनी कौटुम्बिक, सामाजिक और राजकीय सारी जिम्मेदारियों से छूटता दिखाई पड़े, तो उसमें और चार्वाक में क्या अन्तर रहा ? व्यवहार तो दोनोंन ही बिगाड़ा | हम देखते हैं कि कुछ खुदमतलबी अपने आपको खुल्लमखुल्ला चार्वाक कहकर प्राप्त हुई जिम्मेदारियों के प्रति सर्वथा दुर्लक्ष करते हैं । पर साथ ही हम देखते हैं कि कर्मवादी भो प्राप्त जवाबदारियोंके प्रति उतनी ही उपेक्षा बतलाते है । बुद्धिसे परलोकवाद स्वीकार करनेपर भी और वाणी से उसका उच्चारण करनेपर भी उनमें For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001072
Book TitleDharma aur Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi, Dalsukh Malvania
PublisherHemchandra Modi Pustakmala Mumbai
Publication Year1951
Total Pages227
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size13 MB
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