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________________ ४२ धर्म और समाज जानेसे काटा जाता है तो उस समय युवती भी केश-मोह-वश चिल्ला उठती है 'अरे मुझे मार डाला, काट डाला ।' धर्मरक्षकोंकी चिल्लाहट क्या इसी प्रकारकी नहीं है? प्रश्न होगा कि क्या तात्त्विक और व्यावहारिक धर्मका संबंध और उसका बलाबल रूढिपन्थी विद्वान् गिने जानेवाले आचार्यसम्राट् (?) नहीं जानते ? यदि उनकी चिल्लाहट सच्ची हो, तो जवाब यह है कि या तो वे जानते नहीं, और यदि जानते हैं तो इतने असहिष्णु हैं कि उसके आवेशमें समभाव खोकर बाह्य व्यवहारके परिवर्तनको तत्त्विक धर्मका नाश कह देनेकी भूल कर बैठते हैं। मुझे तो इस प्रकारकी बौखलाहटका कारण यही लगता है कि उनके जीवन में तात्विक धर्म तो रहता नहीं और व्यवहारिक धर्मकी लोकप्रतिष्ठा तथा उसके प्रति लोगोंकी भक्ति होनेसे किसी भी त्याग या अर्पण या किसी भी तरह के कर्तव्य या जबाबदारीके बिना सुखी और आलसी जीवन निर्वाह करनेकी उनकी आदत पड़ जाती है, और इस लिए वे इस जीवन और इस आदतको सुरक्षित रखने के लिए ही स्थूल-दर्शी लोगों को उत्तेजित कर होहल्ला मचानेका काम जाने अजाने करने लगते हैं। रूढिवादी धर्माचार्य और पंडित एक तरफ़ तो खुदके धर्मको त्रिकालाबाधित और शाश्वत कहकर सदा ध्रुव मानते और मनवाते हैं और दूसरी तरफ कोई उनकी मान्यताके विरुद्ध विचार प्रकट करता है तो फौरन धर्म के विनाशकी चिल्लाहट मचा देते हैं। यह कैसा 'वदतो व्याघात' है ? मैं उन विद्वानोंसे कहता हूँ कि यदि तुम्हारा धर्म त्रिकालाबाधित है, तो सुखसे सौड़ तानकर सोये रहो, क्योंकि तुम्हारी मतसे किसीके कितने ही प्रयत्न करने पर भी उसमें तनिक भी परिवर्तन नहीं होता और यदि तुम्हारा धर्म विरोधीके विचार मात्रसे नाशको प्राप्त हो जाने जितना कोमल है तो तुम्हारे हजार चौकी पहरा रखते हुए भी नष्ट हो जायगा । कारण, विरोधी विचार तो किसी न किसी दशामें होंगे ही- इस लिए तुम धर्मको त्रिकालाबाधित मानो या विनश्वर मानो, तुम्हारे लिए तो सभी स्थितियों में होल्हला मचानेका प्रयत्न निकम्मा है। धर्मके ध्येयकी परीक्षा धर्मके ध्येयकी परीक्षा भी धर्म-परीक्षाके साथ अनिवार्य रूपसे संबद्ध है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org |
SR No.001072
Book TitleDharma aur Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi, Dalsukh Malvania
PublisherHemchandra Modi Pustakmala Mumbai
Publication Year1951
Total Pages227
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size13 MB
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