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________________ धर्म और समाज मतभेद नहीं है, तो यह सवाल उठता है कि रूढिपन्थी और सुधारवादी इन दोनों के बीच धर्म-रक्षा और धर्म-विच्छेदके विषयमें जो भारी खींचतान, मारामारी और विवाद दिखलाई पड़ता है उसका क्या कारण है ? यह मत-भेद, यह तकरार, धर्म-नामकी किस वस्तु के विषय में है ? मत-भेदके विषय सद्वृत्ति या सद्वृत्तिजन्य गुण, जो मानसिक होनेके कारण सूक्ष्म हैं, उनकी धार्मिकताके विषयमें तो मत-भेद है ही नहीं । मत-भेद तो धर्मके नामसे प्रसिद्ध, धर्मरूपमें माने जानेवाले और धर्मके नामसे व्यवहारमें आनेवाले बाह्य आचरणों या बाह्य व्यवहारोंके विषय में है । यह मत-भेद एक या दूसरे रूपमें तीव्र या तीव्रतर रूपमें उतना ही पुराना है जितना मनुष्य जातिका इतिहास। • सामान्य रीतिसे मत-भेदके विषयरूप बाह्य नियमों, विधानों या कलापोंको तीन भागों में बाँटा जा सकता है। (१) वैयक्तिक नियम वे हैं जिनका मुख्य संबंध व्यक्तिकी इच्छासे है; जैसे कि खान पान स्नानादिके नियम । यदि एक श्रेणीके लोग कन्द-मूलको धर्मकी दृष्टिसे वर्ण्य मान कर खानेमें अधर्म समझते हैं तो दूसरे उसीको खाकर उपवास'धर्म समझते हैं । एक आदमी रात्रि होनेसे पहले खानेमें धर्म मानता है, दूसरा • रात्रि-भोजनमें अधर्म नहीं समझता । एक व्यक्ति स्नानमें ही बड़ा भारी धर्म• समझता है और दूसरा उसीमें अधर्म । (२) कुछ सामाजिक बाह्य व्यवहार होते हैं जो धर्म रूपमें माने जाते हैं। एक समाज मंदिर बनानेमें धर्म मानकर उसके पीछे पूरी शक्ति लगाता है और दूसरा पूर्णरूपसे उसका विरोध करनेमें धर्म मानता है । फिर मन्दिरकी मान्यता रखनेवाले समाजमें भी विभिन्न विरोधी विचारवाले हैं । एक विष्णु, शिव या रामके सिवाय दूसरी मूर्तिको नमस्कार करने या पूजन करनेमें अधर्म बतलाता है, और दूसरा इन्ही विष्णु शिव आदिकी मूर्तियों का आदर करनेमें अधर्म मानता है । इतना ही नहीं किन्तु एक ही देवकी मूर्तियोंके नम और सवस्त्र स्वरूपमें भी भारी सामाजिक मत-भेद है। एक ही प्रकारके स्वरूपकी एक ही देवकी नग्न मूर्तिके माननेवालोंके बीच भी पूजाके तरीकोंमें कुछ कम मत-भेद नहीं हैं। एक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org |
SR No.001072
Book TitleDharma aur Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi, Dalsukh Malvania
PublisherHemchandra Modi Pustakmala Mumbai
Publication Year1951
Total Pages227
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size13 MB
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