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________________ धर्म और उसके ध्येयकी परीक्षा ३३ लगनेका संभव हो वहाँ वैसी समालोचनाके सामने कानून और पुलिस जेलका द्वार बतानेके लिए खड़ी रहती है। यह सत्य है कि धर्मकी परीक्षाको सद्भाग्यसे ऐसा भय नहीं है। इसके भयस्थान दूसरी ही तरहके हैं। परीक्षकमें पूरी विचार-शक्ति न हो, निष्पक्षता रखने का पूरा बल न हो, और फिर उसकी परीक्षा का उचित मूल्य आँक सकनेवाले श्रोता न हों, तो यह परीक्षाका भयस्थान समझा जायगा। धर्म जैसे सूक्ष्म और विवादग्रस्त विषयकी परीक्षाका मुख्य भय-स्थान तो स्वार्थ है । अगर कोई स्वार्थकी सिद्धि के लिए या स्वार्थकी हानिके भयसे प्रेरित होकर धर्मकी मीमांसा शुरू करे, तो वह उसकी परीक्षाके प्रति न्याय नहीं कर सकेगा। इस लए इस विषयमें हाथ डालते समय मनुष्य को सब तरफसे यथाशक्य सावधानी रखना अनिवार्य है अगर वह अपने विचारोंका कुछ भी मूल्य समझता है तो । सबकी सगुणपोषक भावना धर्मका समूल ध्वंस करनेके इच्छुक रूसी साम्यवादियोंसे यदि पूछा जाय कि क्या तुम दया, सत्य, संतोष, त्याग, प्रेम और क्षमा आदि गुणोंका नाश चाहते हो, तो वे क्या जवाब देंगे? साम्यवादियोंका कट्टरसे कट्टर विरोधी भी इम बातको सिद्ध नहीं कर सकता कि वे उपर्युक्त गुणोंका विनाश करना चाहते हैं और दूसरी तरफ धर्मप्राण कहलानेवाले धार्मिक सजनोंसे-किसी भी पंथके अनुयायियोंसे-पूछा जाय कि क्या वे असत्य, दम्भ, क्रोध, हिंसा, अनाचार आदि दुगुणों का षोषण करना चाहते हैं या सत्य मैत्री वगैरह सद्गुणोंका पोषण करना चाहते है, तो मेरी धारणा है कि वे यही जवाब देंगे कि वे एक भी दुर्गुणका पक्ष नहीं करते बल्कि सभी सद्गुणोंका पोषण चाहते हैं । साथ ही साथ उन साम्यवादियोंसे भी उक्त दुर्गुणों के विषयमें पूछ लिया जाय तो ठीक होगा। कोई भी यह नहीं कहेगा कि साम्यवादी भी दुर्गुणोंका पोषण करना चाहते हैं या वे उमीके लिए सब योजना करते हैं । – यदि धार्मिक कहलानेवाले कट्टरपन्थी और धर्मोच्छेदक माने जानेवाले साम्यवादी दोनों ही सद्गुणोंका पोषण करने और दुर्गुणोंको दूर करने के विषयमें एकमत हैं और सामान्य रूपसे सद्गुणोंमें गिने जानेवाले गुणों और दुर्गुणोंमें गिने जानेवाले दोषोंके विषयमें भी दोनों में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001072
Book TitleDharma aur Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi, Dalsukh Malvania
PublisherHemchandra Modi Pustakmala Mumbai
Publication Year1951
Total Pages227
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size13 MB
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