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________________ धर्म और पंथ व्यवहार करेंगे ? एक आर्य समाजका सभ्य कभी सच्ची दृष्टि से मूर्तिके सामने बैठ जाय तो उसका समाज-पंथ उसके लिए क्या करेगा ? इस प्रकार पंथ सत्य और एकताके आड़े आ रहे हैं । अथवा यों कहना चाहिए कि हम स्वयं पंथमय संस्कारके शस्त्रसे सत्य और एकताके साथ द्रोह कर रहे हैं । इसीलिए पंथका अभिमान करनेवाले तथा बड़े बड़े माने जानेवाले धर्मगुरु, पंडित या पुरोहित कभी आपसमें नहीं मिल सकते। वे कभी एकरस नहीं हो सकते, जब कि साधारण मनुष्य आसानीसे मिल-जुल सकते हैं। आप देखेंगे कि एकता और लोक-कल्याणका दावा करनेवाले पंथके गुरु ही एक दूसरेसे अलग अलग रहते हैं। यदि धर्मगुरु एक हो जायँ अर्थात् एक दूसरेका आदर करने लगें, साथ मिलकर काम करें और झगड़े पैदा ही न होने दें, तो समझना चाहिए कि अब पंथमें धर्म आ गया है। __ हमारा कर्तव्य है कि पंथोंमें धर्मको लावें । यदि ऐसा न हो सके तो पंथोंको मिटा दें। धर्मशून्य पंथकी अपेक्षा विना पंथका मनुष्य या पशु होना भी लोकहितकी दृष्टि से अधिक अच्छा है । इसमें किसीको विवाद नहीं हो सकता। [पर्युषण-व्याख्यानमाला, अहमदाबाद, १९३० । अनु० इन्द्रचन्द्र, एम० ए०] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001072
Book TitleDharma aur Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi, Dalsukh Malvania
PublisherHemchandra Modi Pustakmala Mumbai
Publication Year1951
Total Pages227
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size13 MB
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