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________________ धर्म और समाज करके कोई अच्छे चारित्रवाला व्यक्ति भी आ जाता है तो वे लोग उसकी तरफ ध्यान नहीं देते । कई बार तो उसे अपमानित करके निकाल तक देते हैं। धर्ममें सारा संसार एक ही चौका है । छोटे छोटे चौके न होनेके कारण उसमें छुआछूत या घृणा-द्वेषकी बात ही नहीं है। यदि कोई बात बुरी समझी जाती है तो यह कि प्रत्येक व्यक्तिको अपना पाप ही बुरा लगता है। पंथमें चौकेबाजी इतनी जबर्दस्त होती है कि हर एक बातमें छुआछूतकी गंध आती है। इसी कारण पंथवालोंकी नाक अपने आपकी दुर्गन्ध तक नहीं पहुँचती । उन्हें जितनी दुर्गन्ध अपने पंथसे बाहरके लोगोंमें आती है उतनी अपने पापमें नहीं । स्वयं जिसे स्वीकार कर लिया वही उन्हें सुगन्धित लगता है और अपना पकड़ा हुआ रास्ता ही श्रेष्ठ दिखता है। उसके सिवाय सभी बदबूदार तथा सभी मार्ग घटिया मालूम पड़ते हैं । संक्षेपमें कहा जाय तो धर्म मनुष्यको दिन रात पुष्ट होनेवाले भेदभावके संस्कारोंसे निकाल कर अभेदकी तरफ धकेलता है। पंथ इन संस्कारोंको अधिकाधिक पुष्ट करता है । यदि दैवयोगसे कोई अभेदकी तरफ जाता है तो पंथको सन्ताप होता है । धर्ममें दुनियाके छोटे बड़े झगड़े, जर, जोरू, जमीन, छुटपन, बड़प्पन आदिके सब विरोध शांत हो जाते हैं | पंथमें धर्मके नाम और धर्मकी भावनापर ही झगड़े खड़े हो जाते हैं। इसमें ऐसा मालूम पड़ने लगता है कि झगड़ेके विना धर्मकी रक्षा ही नहीं हो सकती। धर्म और पंथका अन्तर समझनेके लिए पानीका उदाहरण लें, तो पंथ ऐसा पानी है जो समुद्र, नदी, तालाब, कुआँ आदि मर्यादाओंसे भी अधिक संकुचित होकर हिन्दुओंके पीनेके घड़ेमें पड़ा हुआ है। किसी दूसरे व्यक्तिके छूते ही उसके अपवित्र एवं भ्रष्ट हो जानेका डर है । पर धर्म आकाशसे गिरते हुए वर्षाक पानी सरीखा है। इसके लिए कोई स्थान या व्यक्ति ऊँचा नीचा नहीं है । “इसमें एक जगह एक स्वाद और दूसरी जगह दूसरा स्वाद नहीं है । इसमें रूप-रंगका भी भेद नहीं है। प्रत्येक व्यक्ति इसे प्राप्त कर सकता है और पचा सकता है। पंथ हिन्दुओं के घड़े के पानी सरीखा होता है । उसके लिए अपने सिवाय दूसरे सब पानी अस्पृश्य होते हैं। उसे अपना स्वाद और अपना ही रूप अच्छा लगता है । प्राणान्त होनेपर भी पन्थ दूसरों के घड़े को छूनेसे रोकता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001072
Book TitleDharma aur Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi, Dalsukh Malvania
PublisherHemchandra Modi Pustakmala Mumbai
Publication Year1951
Total Pages227
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size13 MB
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