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________________ धर्म और पंथ . २७ है । उसमें अमिमान सरीखी कोई बात ही नहीं होती। चाहे जितने गुण तथा सम्पत्ति प्राप्त हो जाय वह अपनेको सबसे छोटा ही देखता है । धर्ममें ब्रह्म अर्थात् सच्चे जीवनकी झाँकी होनेसे, उसकी व्यापकताके सामने मनुष्य को अपना व्यक्तित्व हमेशा छोटा-सा प्रतीत होता है । पंथमें इससे उल्टा है। इसमें गुण और वैभव न होनेपर भी मनुष्य अपनेको दूसरोंसे बड़ा मानता है और दूसरोंसे मनवानेका प्रयत्न करता है। उसमें यदि नम्रता होती है तो वह बनावटी होती है । उस मनुष्य को सदा अपने बड़प्पनका खयाल बना रहता है। उसकी नम्रता बड़प्पनका पोषण करनेके लिए होती है। सच्चे जीवनकी झांकी न होनेके कारण गुणोंकी अनन्तता तथा अपनी पामरताका भान न होनेके कारण पंथमें पड़ा हुआ मनुष्य अपनी लघुताका अनुभव नहीं कर सकता । वह लघुताका केवल दिखावा करता है। __धर्ममें सत्यकी दृष्टि होती है। उसमें सभी तरफ देखने तथा जाननेका धैर्य होता है । सभी पक्षोंको सह लेनेकी उदारता होती है । पंथमें ऐसा नहीं होता । उसमें सत्याभासकी दृष्टि होती है। वह सम्पूर्ण सत्यको अपने ही पक्षमें मान लेता है, इसलिए दूसरी तरफ देखने तथा जाननेके लिए उसका झुकाव ही नहीं होता। विरोधी पक्षों को सहने अथवा समझनेकी उदारता उसमें नहीं होती ।। धर्ममें अपना दोषोंका और दूसरोंके गुणोंका दर्शन मुख्य होता है । पंथमें इससे उल्टा है । पंथवाला दूसरोंके गुणोंकी अपेक्षा दोष ही अधिक देखता है और अपने दोषोंकी अपेक्षा गुणोंको ही अधिक देखता है । वह अपने ही गुणोंका बखान करता रहता है, उसकी आँखोंमें अपने दोष आते ही नहीं। ___ धर्ममें केवल चारित्रपर ध्यान दिया जाता है । जाति, लिंग, उमर, वेश, चिह्न, भाषा तथा दूसरी बाह्य वस्तुओंके लिए उसमें स्थान नहीं है । पंथमें इन बाह्य वस्तुओंपर ही अधिक ध्यान दिया जाता है। अमुक व्यक्ति किस जातिका है ? पुरुष है या स्त्रो ? उमर क्या है ? वेश कैसा है ? कौन-सी भाषा बोलता है ? किस प्रकार उठता बैठता है ? पंथमें इन्हींको मुख्य मानकर चारित्रको गौणं कर दिया जाता है। बहुत बार ऐसा होता है कि जिस जाति, लिंग, उमर, वेश या चिह्नकी पंथविशेषके अनुयायिओंमें प्रतिष्ठा नहीं है, उन्हें धारण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001072
Book TitleDharma aur Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi, Dalsukh Malvania
PublisherHemchandra Modi Pustakmala Mumbai
Publication Year1951
Total Pages227
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size13 MB
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