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________________ धर्म और समाज १५० अब मैं अपने कर्त्तव्य सम्बन्धी प्रश्नोंकी ओर आता हूँ । उद्योग, शिक्षा, राजसत्ता आदिके राष्ट्रव्यापी निर्णय, जो देशकी महासभा समय समयपर किया करती है, वही निर्णय हमारे भी हैं, इसलिए उनका यहाँ अलग से विचार करना अनावश्यक है । सामाजिक प्रश्नोंमें जाति-पाँतिके बंधन, बाल-वृद्ध-विवाह, विधवाओंके प्रति जिम्मेदारी, अनुपयोगी खर्च इत्यादि अनेक हैं । इन सब प्रश्नोंके विषय में जैन समाजकी भिन्न भिन्न परिषदें वर्षोंसे प्रस्ताव करती आ रही हैं और वर्तमान परिस्थिति इस विषय में स्वयं ही कुछ मार्गोको खोल रही है । हमारी युवक परिषदने इस विषय में कुछ ज्यादा वृद्धि नहीं की है । हमारी परिषदको अपनी मर्यादाएँ समझकर ही काम करना चाहिए । यह मुख्य रूपसे विचारनेका हौ कार्य करती है। विचारोंको कार्यरूपमें परिणत करनेके लिए जिस स्थिर बुद्धि-बल और समय-बलकी आवश्यकता है उसे पूरा करनेवाला अगर कोई व्यक्ति न हो तो अर्थसंग्रहका काम कठिन हो जाता है । ऐसी स्थिति में चाहे जितने सुकर्त्तव्योंकी रूपरेखा तैयार की जाय, व्यावहारिक दृष्टिसे उसका ज्यादा अर्थ नहीं रहता । हमारी परिषदको एक भी साधुका सहयोग नहीं है, जो अपनी विचारसरणीसे या दूसरी तरहसे सहायता करके परिषद के कार्यको सरल बनाए । परिषदको अपने गृहस्थ सभ्योंके बलपर ही जिन्दा रहना है । एक तरफ उसमें स्वतंत्रताका पूरा अवकाश होनेसे विकासका स्थान है, दूसरी तरफ उसके प्रायः सभी सदस्य व्यापारी वृत्तिके हैं, इस कारण वे कार्योंको व्यवस्थित और सतत संचालन करनेमें उचित समय नहीं दे सकते । इसीलिए मैं बहुत ही परिमित कर्त्तव्यों का निर्देश करता हूँ । देश भिन्न भिन्न प्रान्तोंमें अनेक शहर कस्बे और ग्राम ऐसे हैं जहाँपर जैन युवक होते हुए भी उनका संघ नहीं है । उनके लिए अपेक्षित धार्मिक, सामाजिक और राष्ट्रीय पठन-पाठनका सुभीता नहीं है । एक प्रकारसे वे अँधेरे में है । उनमें उत्साह और लगन होते हुए भी विचारने, बोलने, मिलने जुलनेका स्थान नहीं है । शहरों और कस्बों में पुस्तकालयकी सुविधा होते हुए भी जब अनेक उत्साही जैन युवकोंका पठन पठन नाम मात्रका भी नहीं है तब उनके विचार- सामर्थ्य के विषयमें तो कहना ही क्या ? ऐसी स्थिति में हमारी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001072
Book TitleDharma aur Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi, Dalsukh Malvania
PublisherHemchandra Modi Pustakmala Mumbai
Publication Year1951
Total Pages227
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size13 MB
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