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________________ त्यागी-संस्था १३९ स्वरूप नहीं समझते और अपने ऊपर किसी भी तरहका नियंत्रण आनेपर असंतुष्ट होते हैं, अनेक वार तर्क करते हैं कि यदि स्वश्रम और दूसरे अनेक जिम्मेदारीके नियमन लादे जायेंगे, तो बुद्ध और महावीर जैसे त्यागी किस तरह होंगे और जगतको कौन अपनी महान् शोधकी विरासत सौपेंगा ? उन्हें समझना चाहिए कि आजकलका जगत् हजारों वर्ष पहलेका जगत् नहीं है ।। आजका संसार अनेक तरह के अनुभव प्राप्त कर चुका है, उसने अपनी शोधके बाद यह भली भाँति देख लिया है कि जीवनकी शुद्धि और ज्ञानकी शोध करनेमें स्वश्रम या जिम्मेदारीके बंधन बाधक नहीं होते। यदि वे बाधक होते तो इस जगतमें जो सैकड़ों अद्भुत वैज्ञानिक और शोधक हुए हैं, और गाँधीजी जैसे नररत्न हुए हैं, वे कभी न होते। एकान्त त्यागीको संस्थाकी सुविधा अथवा लोगोंकी सेवा लेनेकी भी भूख या तृष्णा नहीं होती। वह तो आप-बल और सर्वस्व त्यागके ऊपर ही जूझता है । इसलिए यदि ऐसा कोई विरल व्यक्ति होगा तो वह अपने आप ही अपना मार्ग ढूँढ़ लेगा। उसके लिए किसी भी तरहका विधान या नियम व्यर्थ है। वैसा आदमी तो स्वयं ही नियमरूप होता है। अनेक बार उसे दूसरोंका मार्गदर्शन, दूसरोंकी मदद और दूसरोंका नियमन असह्य हो जाता है। जैसे उसके लिए बाह्य नियंत्रण बाधक होता है, उसी तरह साधारण कोटिके त्यागी उम्मेदवारोंको बाह्यः नियंत्रण और मार्गदर्शनका अभाव बाधक होता है। इसलिए इन दोनोंके मार्ग भिन्न हैं । एकके लिए जो साधक है वही दूसरेके लिए बाधक । इसलिए प्रस्तुत विचार केवल लोकाश्रित त्यागी-संस्था तक ही सीमित है। जैन त्यागी-संस्था और स्वश्रम दूसरी किसी भी त्यागी संस्थाकी अपेक्षा जैन-त्यागी-संस्था अपनेको अधिक त्यागी और उन्नत मानती है और दूसरे भी ऐसा ही समझते हैं। इसलिए उसे ही सबसे पहले और सबसे अधिक यह स्वश्रमका सिद्धान्त अपनाना चाहिए । यह प्रस्ताव और यह विचार अनेकोंको केवल आश्चर्यान्वित ही नहीं करेगा, उनके हृदयमें क्रोध और आवेश भी उत्पन्न कर सकता है। क्योंकि परंपरासे उन्हें इस भावनाकी विरासत मिली है और वे प्रामाणिक रूपसे यह मानते हैं कि जैन साधु दुनियासे पर है, उसका केवल आध्यात्मिक जीवन है, और सारे ही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001072
Book TitleDharma aur Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi, Dalsukh Malvania
PublisherHemchandra Modi Pustakmala Mumbai
Publication Year1951
Total Pages227
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size13 MB
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