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पुस्तकमालाका परिचय
इस मालाकी यह छठी पुस्तक है । सत् १९४२ में मेरे एक मात्र पुत्र हेमचन्द्रका तरुण अवस्थामें अचानक देहान्त हो गया । उसकी प्रवृत्ति स्वतंत्र विचार-प्रधान और चिकित्सा-प्रधान थी। विविध विषयोंके अध्ययनका और उनपर लिखनेका शौक भी उसे था। इसलिए इस मालाका स्वरूप भी वैसा ही पसन्द किया गया।
यह निश्चय किया गया है कि इस मालाकी पुस्तकें लागत मूल्यपर, कुछ घाटा उठाकर भी, वेची जाएँ । विक्रीसे वसूल होती रहनेवाली रकममेंसे नई नई पुस्तकें प्रकाशित होती रहें
और उनके द्वारा हिन्दी पाठकोंमें युगके अनुरूप स्वतंत्र विचारोंका प्रचार किया जाय ।
नाथूराम प्रेमी
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