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स्वतंत्रताका अर्थ
इसकी तुलनामें दूसरे अनिष्ट नगण्य हो गये हैं। ब्रिटिश शासन से प्राप्त यह एक ही लाभ ऐसा है जिसमें स्वतंत्रताके सभी बीजोंक। समावेश हो जाता है । इस समय जो हमें स्वतंत्रता मिल रही है, उसके साथ साथ ब्रिटिश शासन में पैदा हुए इष्ट और अनिष्ट दोनों तत्व हमें उत्तराधिकार में मिल रहे हैं । अब अगस्तकी पन्द्रहवी तारीख के पश्चात् हमारे लिए स्वतंत्रताका क्या अर्थ हो सकता है, इसका विचार करनेका कर्त्तव्य हमारा है न कि अंग्रेजोंका ।
ऊपर की दृष्टिका अनुसरण करते हुए स्वराज्य प्राप्तिके मंगल- दिवसपर स्वतंत्रताका अर्थ संक्षेपमें इस प्रकार किया जा सकता है - ( १ ) इतिहासका वफादार रहकर वर्तमान परिस्थितिका तटस्थ अवलोकन करके भावी मंगलनिर्माणकी दृष्टिसे जो अनेक फेरफार करने पड़ेंगे, उनको पूरा करनेमें पूर्ण उल्लास और रसका अनुभव करना, ( २ ) जीवन के भिन्न भिन्न क्षेत्रोंमें जो चुराइयाँ ओर कमियाँ है उनको दूर करनेमें कटिबद्ध होना, ( ३ ) प्रत्येक व्यक्ति या प्रजा अपनी प्राप्त सिद्धिको सुरक्षित रक्खे और नई सिद्धियोंको प्राप्त करनेकी पूरी पूरी जबाबदारी उठानेकी और उसके लिए जीवन दान करनेकी भावना पैदा करे ।
उपर्युक्त अर्थ हमें ' ईशावास्य ' के मूलमंत्रको मुद्रालेख बनानेके लिए प्रेरित करता है । वह मुद्रालेख यह है कि जो कोई व्यक्ति लम्बे और सुखी जीवनकी इच्छा करता है, उसे आवश्यक सभी कर्त्तव्योंको करना चाहिए । व्यक्ति और समष्टिके मधुर संबंध बनानेके लिए स्वकर्त्तव्य के फलका उपभोग त्यागपूर्वक करना चाहिए और दूसरोंके श्रमफलके लालचसे बचना चाहिए ।
' ईशावास्य ' के मंत्रका उक्त सार धर्म, जाति, अधिकार और संपत्तिके स्वामियोंसे स्वराज्यप्राप्ति के इस दिवसपर कहता है कि आप सत्ताके लोभसे अपने हकोंको आगे न रखकर जनता के हितमें अपना हित समझें । अगर इस तरह नहीं होगा तो यह अंग्रेजोंके शासन के समयसे भी ज्यादा भयंकर अराजकता पैदा करनेवाला होगा और हम विदेशी आक्रमणको आमंत्रण कर स्वयं ही गुलाम बन जायेंगे ।
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प्रबुद्ध जैन '
१-९-४७
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अनुवादकमोहनलाल खारीवाल
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