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भाषाटिप्पणानि ।
प्रथमाध्याय का प्रथमाह्निक |
पृ० पं० नं०
नं०
१ पाणिनि, पिङ्गल, कणाद और अक्षपाद के ग्रन्थों का निर्देश
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२ वाचकमुख्य उमास्वाति का परिचय
१ ह
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३ दिगम्बराचार्य अकलङ्क के ग्रन्थों का निर्देश १ ११ ४ धर्मकीर्ति के कुछ ग्रन्थों का निर्देश ५ प्रथम सूत्र की शब्द रचना के आधार का ऐतिहासिक दिग्दर्शन
६ आचार्य हेमचन्द्र ने 'अथ' के जो तीन अर्थ किये हैं उनके मूल का ऐतिहासिक अवलोकन
७ जैनपरंपराप्रसिद्ध पांच परमेष्ठिओं का निर्देश
हेमचन्द्राचार्य कृत प्रमाण निर्वचन के मूल का निर्देश
६ शास्त्र-प्रवृत्ति के दो, तीन, और चार प्रकारों के विवाद का रहस्य | हेमचन्द्र द्वारा इस विषय में किये गए नैयायिकों के अनुकरण का निर्देश
१० मीमांसा शब्द के विशिष्ट अर्थ का आधार क्या है ? और उससे आचार्य को क्या अभिप्रेत है उसका निदर्शन ११ कणादकृत कारणशुद्धिमूलक प्रमाणसामान्य लक्षण और उसमें नैयायिकवैशेषिक, मीमांसक और बौद्ध द्वारा किए गए उत्तरोत्तर विकास का तुलनात्मक ऐतिहासिक दिग्दर्शन | जैनाचार्यों के प्रमाण लक्षणों की विभिन्न शब्द रचना के आधार का ऐतिहासिक अवलोकन | जैन परंपरा में हेमचन्द्र के संशोधन का अवलोकन
१२ लक्षण के प्रयोजन के विषय में दार्शनिकों की विप्रतिपत्ति का दिग्दर्शन १३ सूत्र १. १. २ की व्याख्या के आधार की सूचना १४ अर्थ के प्रकारों के विषय में दार्शनिकों के मतभेद का दिग्दर्शन
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१५ स्वप्रकाश के स्थापन में प्रयुक्त युक्तियों आधार का निर्देश
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१६ प्रमाण लक्षण में स्वपद क्यों नहीं रखा उसका आचार्यकृत खुलासा
१७ दर्शनशास्त्र में जब धर्मकीर्ति ने धाराचाहि के प्रामाण्य - अप्रामाण्य की चर्चा दाखिल की तब उसके विषय में सभी दार्शनिकों ने जो मन्तव्य प्रगट किया है उसका रहस्योद्घाटन १८ सूत्र १,१.४ की रचना के उद्देश्य और वैशिष्ट्य का सूचन
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१६ सूत्र १. १. ४ और उसकी वृत्ति की विशिष्टता तत्त्वोपप्लव के आचार्यकृत अवलोकन से फलित होने की संभावना १४ १५ २० संशय के विभिन्न लक्षणों की तुलना १४ २२ २१ प्रशस्तपाद कृत अनध्यवसाय के स्वरूप का निर्देश १५ २२ हेमचन्द्र कृत विपर्य के लक्षण की तुलना १५ २३ २३ प्रामाण्य और अप्रामाण्य के स्वतः परतः की चर्चा के प्रारंभ का इतिहास और इस विषय में दार्शनिकों के मन्तव्य का दिग्दर्शन
लक्षण का निरास
२६ जैन परंपरा में पाई जानेवाली आगमिक और तार्किक ज्ञान चर्चा का ऐतिहासिक दृष्टि से विस्तृत अवलोकन २७ वैशेषिक संगत प्रमाणद्वित्ववाद और प्रमाणत्रित्ववाद का निर्देश
२८ प्रत्यक्षघटक अक्षशब्द के अर्थों में
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१६ १८ २४ परोक्षार्थक आगम के प्रामाण्य के समर्थन में अक्षपाद की तरह मन्त्रायुर्वेद को दृष्टान्त न करके आचार्य हेमचन्द्र ने ज्योतिष शास्त्र का दृष्टान्त दिया है उसका ऐतिहासिक दृष्टि से रहस्योद्घाटन
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२५ आचार्य द्वारा बौद्ध-नैयायिकों के प्रमाण
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