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प्रस्तावना
अनुसार आठ वर्ष की आयु में राज्याधिकार प्राप्त हुआ था और उसने भी अल्पायु में सोलंकियों के राज्य की प्रतिष्ठा स्थापित की थी ।
जिसकी विद्या प्राप्ति इतनी असाधारण थी उसने विद्याभ्यास किससे, कहाँ और कैसे किया यह कुतूहल स्वाभाविक है । परन्तु इस विषय में हमें आवश्यक ज्ञातव्य सामग्री लब्ध नहीं है । उनके दीक्षागुरु देवचन्द्रसूरि स्वयं विद्वान् थे और 'स्थानामसूत्र' पर उनकी टीका प्रसिद्ध है । 'त्रिषष्टिशलाका पुरुषचरित' में हेमचन्द्र कहते हैं कि- “ तत्प्रसादादधिगतज्ञानसम्पन्महोदयः " - अर्थात् गुरु देवचन्द्र के प्रसाद से ज्ञान सम्पत्ति का महोदय उन्हे प्राप्त हुआ था । परन्तु दीक्षागुरु देवचन्द्र विद्यागुरु होंगे कि नहीं और होंगे तो कहां तक, इस प्रश्न का उत्तर नहीं मिलता ।
'प्रभावक चरित' के अनुसार सोमचन्द्र को ( आचार्य होने से पूर्व ) तर्क, लक्षण और साहित्य के ऊपर शीघ्रता से प्रभुत्व प्राप्त हुआ था; और ' शतसहस्रपद' की धारण शक्ति से उसे सन्तोष न हुआ इसलिए 'काश्मीरदेशवासिनी' की आराधना करने के लिए काश्मीर जाने की अनुमति गुरु से मांगी पर उस 'काश्मीर देशवासिनी ब्राह्मी' के लिए उन्हें काश्मीर जाना न पड़ा; किन्तु काश्मीर के लिए प्रयाण करते ही खम्भात से बाहर श्रीवत विहार में उस ब्राह्मी का उन्हें साक्षात्कार हुआ और इस तरह स्वयं 'सिद्धसारस्वत' हुए । '
'प्रभावक चरित' के इस कथन से ऐतिहासिक तात्पर्य क्या निकालना यह विचारणीय है । मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि सोमचन्द्र भले काश्मीर न गये हों तो भी उन्होंने काश्मीरी पण्डितों से अध्ययन किया होगा । काश्मीरी पण्डित गुजरात में आते जाते थे यह विरहण के आगमन से सूचित होता है । 'मुद्रित कुमुदचन्द्र' नाटक के अनुसार जयसिंह की सभा में उत्साह नामक काश्मीरी पण्डित था । हेमचन्द्र को व्याकरण लिखने से पूर्व व्याकरण प्रन्थों की आवश्यकता पड़ी थी जिन्हें लेने के लिए उत्साह पण्डित काश्मीर देश में गया था और वहाँ से आठ व्याकरण लेकर आया था । जब 'सिद्धहेम' पूरा हुआ तब उन्होंने उसे शारदा देश में भेजा था। इसके अतिरिक्त काव्यानुशासन में हेमचन्द्र जिस बहुमान से आचार्य अभिनव
१ प्रबन्धों के अनुसार जयसिंह वि० सं० ११५० ( ई० स० १०९४ ) में सिंहासनारूढ हुआ । उस समय यदि उसकी आयु आठ वर्ष की मान लें तो उसका जम्म वि० सं० ११४२ में और इस तरह हेमचन्द्र से आयु में जयसिंह को तीन वर्ष बड़ा समझना चाहिए । 'प्रबन्धचिन्तामणि' उसकी आयु तीन वर्ष की जबकि 'पुरातन प्रबन्धसंग्रह' आठ वर्ष की बताता है जो कि हेमचन्द्र के 'द्वयाश्रय' में कथित 'स्तम्बे करित्रीहि' के साथ ठीक बैठता है ( काव्यानुशासन प्रस्तावना पृ० १६५ ) । कुमारपाल का जन्म यदि वि० सं० ११४९ ( ई० स० १०९३ ) में स्वीकार करें तो हेमचन्द्र कुमारपाल से चार वर्ष बड़े हुए देखो काव्यानुशासन प्रस्तावना पृ० २०१ और पृ० २७१ ।
प्रमाणनयतत्वालोक और स्याद्वादरलाकर के कर्ता महान् जैन तार्किक वादिदेवसूरि से आयु में हेमचन्द्र दो वर्ष छोटे थे; परन्तु हेमचन्द्र आचार्य की दृष्टि से आठ वर्ष बड़े थे। संभव है, दिगम्बराचार्य कुमुदचन्द्र के साथ वादयुद्ध के समय देवसूरि की ख्याति अधिक हो-देखो काव्यानुशासन प्रस्तावना पृ० २७०, फुटनोट । २ देखो प्रभावकचरित पृ० २९८-९९ ।
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