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________________ ६. भाषाटिप्पणगतं शब्दों और विषयों की सूची। - २९ • सन्दिग्ध १००.१७ साधय॑सम (जाति) ११३. 16 . सन्दिग्धोदाहरणाभास १०५:३ साधारण १४३. २ सन्धायसंभाषा ११५.३१ साध्यसम (जाति) ११३. २५ । । सनिकर्ष जन्यस्व १३४. १३. .. साध्यसम (हेजाभास )९८ सपक्ष १४२. २४ साध्याविनाभावी २... सपक्षसत्व ०१.. सामग्री १६... सप्तभङ्गी ६४.२६ देखो अनेकान्तवाद सामान्य.. सभापति ११८. 10 सामट ३२.. सभ्य ११८. १७ सामान्यच्छल ११५.३ समवायी (लिङ्ग) ३. २९ । सूक्ष्मकालकला ११.२४ सम्भाषा ११५. २९ देखो वादकथा स्पष्ट १३५.२४ सम्यग १०.१७ स्फुट २६. १७; १३५. १५ सम्यग्दर्शन १२८.८ स्मरण ७२.२ देखो स्मृति सर्वज्ञवाद स्मृति ११. १०; २३.४ की प्राचीनता का निर्देश २७.१२ स्मृति के विरोधी-चार्वाक, अज्ञानवादी और मीमांसक कणाद, पतञ्जलि, प्रशस्तपाद और जैनाचार्यों के २७ २२ , लक्षणों की तुलना ७२.१ के समर्थक-न्याय वैशेषिक, सांख्ययोग, वेदान्त, न्यायसूत्रगत संस्कारोद्बोधकनिमित्त ७२. १६ बौद्ध और जैन २७. २३ प्रामाण्य के विषय में जैन-जैनेतरों का मतभेद विरोधियों का मन्तव्य २७.२५ ७२. २१ बौद्ध-जैनों का दृष्टिबिन्दु २८.८ स्मृतिशास्त्रका प्रामाण्य और अप्रामाण्य श्रुत्यधीन' न्यायवैशेषिकआदि वैदिकदर्शनों का दृष्टिबिन्दु । ऐसी मीमांसकों की व्यवस्था ७३. . २८." स्मृतिरूप ज्ञान में भी वही व्यवस्था ७३.७ सांख्य-योग-वेदान्त का दृष्टिबिन्दु २६. ३ मीमांसकों का वैदिक दर्शनों पर असर ७३." असर्वज्ञवाद, देवसर्वज्ञवाद, और मनुष्यसर्वज्ञवाद अप्रामाण्यमें दार्शनिकों की युक्तियाँ ७३.१६. कावेद के प्रामाण्य-अप्रामाण्यवाद से संबंध२६.१. बौद्ध क्यों अप्रमाण मानता है ? ७४.७. धर्मज्ञवाद का मूल बौद्ध परंपरा में ३०. ७ जैनों का जवाब ७४.१३ सर्वज्ञवादका मूल जैन-परंपरा में ३०.१४ अविसंवादित्व सर्वसम्मत ७४. १८ कुमारिलकृत सर्वज्ञवाद और धर्मज्ञवाद का स्मृति (धारणा)४७. १२ खण्डन ३० २० शान्तरक्षितकृत धर्मज्ञवाद और सर्वज्ञवाद का स्याद्वाद ६१.७ ६४. २६ देखो अनेकान्तवाद समर्थन और बुद्ध ही में धर्मज्ञत्व और सर्वज्ञत्व स्वतःपरतः (प्रामाण्य) १६.१८ की सिद्धि ३२.१ __ देखो प्रामाण्य- अप्रामाण्य सांख्य, जैन आदि का भी अपने ही आप्त में स्वनिर्णय ११. ८; १३०, ७ देखो स्वप्रकाश सर्वज्ञत्वसिद्धि का प्रयत्न ३३. ३ स्वपरप्रकाश १३०. ८ देखो स्वप्रकाश स्वपरव्यवसिति ६८.२९ सर्वपार्षद १०८.३ सविकल्पक २६. १३; १२६, ३. १३३. २५ स्वप्रकाश सव्यभिचार १००.१६ ज्ञानकी प्रत्यक्षता-परोक्षता १३०." सांप्रदायिकरोष ३६. 10 स्वप्रकाश और परप्रकाशका अर्थ १३०, १५ साम्यवहारिक १६. १५२२. ४३८.१६१२७.३ स्वप्रत्यक्ष का अर्थ १३०, १९ साम्यवहारिकप्रत्यक्ष १३३. १६ विज्ञानवादी बौद्ध, प्रभाकर, वेदान्त और जैनों का साधर्म्यदृष्टान्ताभास १०४. ७ स्वप्रकाशवाद १३०.२५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001069
Book TitlePramana Mimansa Tika Tippan
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorSukhlal Sanghavi, Mahendrakumar Shastri, Dalsukh Malvania
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1995
Total Pages340
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Nyay, Nay, & Praman
File Size24 MB
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