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________________ ६. भाषाटिप्पणगत शब्दों और विषयों को सूची। । २५ प्रतिवादी ११८. १७ सांख्य-योग-जैनसम्मत प्रमाणरूप से प्रतिषेध १०६.२२ सविकल्पक २६ १४ प्रतिसंख्यान ४६. ६,१३५. ३० प्रत्यभिज्ञान प्रत्यक्ष २३, २४, १३८. ७; १३७. १५ प्रामाण्य के विषय में बौद्ध-बौद्धतरों के प्रत्यक्ष मतभेद का रहस्य ७५३ सिद्धसेनोपज्ञ स्वार्थ-परार्थरूप दैविध्य ०.१८ स्वरूप के विषय में बौद्धों का मन्तव्य ७५.१४ प्राचीनंदार्शनिक साहित्य में सिर्फ जन्यप्रत्यक्ष वाचस्पति और जयन्त ७५. २२ का लक्षण १३२.७ जैनाचार्य अकलङ्क का मत ७६१ प्राचीन साहित्य में ईश्वर और उनके नित्य जैनों के द्वारा उपमानका समावेश ७६. ९ ज्ञान की चर्चा नहीं १३२. १५ प्रत्यय (चत्वारः)४४.२ . लौकिक और अलौकिक १३३. . प्रमा १२७. २६ बौद्ध और शाङ्कर वेदान्तसम्मत अलौकिक की प्रमाण ५३. ४,१३६.८ निर्विकल्पकता १३३. २२ प्रमाणचैतन्य १३४.१० . रामानुजसम्मत अलौकिक की सविकल्पकता प्रमाणज्येष्ठाज्येष्ठत्व न्याय-सांख्यसम्मत प्रत्यक्ष का ज्येष्ठत्व २४. १४ न्यायवैशेषिकजैनसम्मत अलौकिक की . पूर्वोत्तरमीमांसासम्मत आगम का ज्येष्ठत्व उभयरूपता १३३. २५ २४. १५ प्रत्यक्षत्वका नियामकतत्त्व १३४.८ बौद्धसम्मत प्रत्यक्षानुमान का समबलत्व २४.६६ बौद्धसंमत निर्विकल्पक की ही प्रत्यक्षता अकलङ्क-विद्यानन्दसम्मत प्रत्यक्ष का ज्येष्ठत्व १३४. १९ २४.१८ जन्यनित्यसाधारण लक्षण-भासर्वज्ञ २४. २३ श्वेतांबराचार्यसम्मत प्रत्यक्ष-परोक्षका समबलत्व शालिकनाथ १३४ २९ २५.१ सिद्धसेन का लक्षण १३५.२. प्रमाणनित्व अकलङ्ककृत संशोधन १३५. १० हेमचन्द्रवादिदेव ओर सिद्धर्षि के अनुसार वैशेहेमचन्द्र १३५. २५ षिकसम्मत २३.१३ प्रत्यक्षप्रमाण प्रमाणद्विस्व जैमिनीयप्रत्यक्षसूत्र की व्याख्या में टीकाकारों प्रशस्तपादसम्मत २३.८ का मतभेद ५१.२० प्रमाणनिरुक्ति जैमिनीय प्रत्यक्षके खण्डनकार ५२. १ वात्स्यायन, वाचस्पति, हेमचन्द्र तथा प्रमेयरत्नसांख्य की तीन परम्पराएँ ५२ १९ . माला ३." सांख्यलक्षणों के खण्डनकार ५२. २३ प्रमाणमीमांसा ४. २५ प्रमाणफल प्रत्यक्ष लक्षण आध्यात्मिक दृष्टिसे प्राचीन चर्चा ६६. ७ दिङ्नाग और धर्मकीर्ति का मतभेद ५०.१० तर्कयुगीन ब्यावहारिक दृष्टि से चर्चा ६६. १४ शान्तरक्षित का समन्वय ५०.१० भेदाभेदके बारे में वैदिक, बौद्ध और जैन बौद्धलक्षणों का खण्डन ५०. २५ सिद्धसेन के लक्षण की तुलना ५०. ३२ फल के स्वरूप के विषय में नैयायिक वैशेषिक, प्रत्यक्षस्वरूप मीमांसक और सांख्य का ऐकमत्य ६७.३ बौद्धसम्मत निर्विकल्पकमात्र २६. १२ . फल के स्वरूप के विषय में दो बौद्ध परम्पराएँ न्यायवैशेषिकसम्मत निर्विकल्पक-सविकल्पक ६७.१३ सिद्धसेन और समन्तभद्र ६८.४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001069
Book TitlePramana Mimansa Tika Tippan
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorSukhlal Sanghavi, Mahendrakumar Shastri, Dalsukh Malvania
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1995
Total Pages340
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Nyay, Nay, & Praman
File Size24 MB
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