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________________ २४ नित्यज्ञान १३२.२५ नित्यप्रत्यक्ष १३२. १५ नित्यवाद ५३.. ८ जैनाचार्य अकलङ्ककृत ब्राह्मण - बौद्ध परम्परा का खण्डन १२०. २६ हेमचन्द्र १२१. १५ देखो जयपराजयव्यवस्था नित्यानित्यउभयवाद ५३. ९ 'नित्यानित्यात्मकवाद ५३. ९ नित्यसम (जाति) ११४. १० निदर्शनाभास १०४. १४ देखो दृष्टान्ताभास नियतसाहचर्यं ७६. २५ देखो व्याप्ति ६. भाषाटिप्पणगत शब्दों और विषयों की सूची ।. निर्णय | ३; १२६.३० निर्विकल्प १३३. २३ पक्ष निर्विकल्पक १२५ १५; देखो दर्शन निर्विकल्पक प्रत्यक्ष ७४. २४ नैरात्म्यदर्शन ३२. १५ नैश्araraग्रह १२६. १५ न्यायवाक्य सांख्यसम्मत तीन अवयव ६४. १५ मीमांसकसम्मत तीन और चार अवयव ६४. १६ नैयायिकसम्मत पञ्चावयव ६४ २९ बौद्धसम्मत एक और दो अवयव ६४. ३० जैनों का अनेकान्तवाद ६४. ३२ भद्रबाहु और वात्स्यायन के दशावयव ६५ १५ [प] प्रशस्तपादके द्वारा स्वरूपनिर्णय ८८. १ जैनाचार्यों के द्वारा बौद्धों का अनुकरण ८८.३ लक्षणान्तर्गत विशेषणों की व्यावृत्ति द. ७ बाधितपक्ष के विषय में प्रशस्त, न्यायप्रवेश, न्यायबिन्दु, माठर और जैनाचार्यों के मन्तव्य की तुलना . १३ आकार के विषय में वात्स्यायन बौद्ध, और जैनाचार्यों के मन्तव्य की तुलना ८६. १३. विकल्पसिद्ध और प्रमाणविकल्पसिद्ध के विषय में जैन और धर्मकीर्ति का विवाद ८६.२४ गङ्गेश ६०. १ देखो पक्षप्रयोग पक्षप्रयोग है३ १७. वैदिकदर्शनों के मतानुसार आवश्यक ६३. १८ धर्मकीर्ति का निषेध ६३. २० Jain Education International जैनाचार्यों का समर्थन ४३. २१ हेमचन्द्र और वाचस्पति ३३. २५ देखो पक्ष पक्षसख ८१. १ पक्षसिद्धि १२१.३० पत्रपरीक्षा १२४. ३० पत्रवाक्य ११६. १७ परचितज्ञान ३८.७ परप्रकाश १३०. ७ देखो स्वप्रकाश परप्रकाशकत्व १०. २६ परप्रकाशवादी १३१. १९ परप्रत्यक्ष १३०.२३ परप्रत्यक्षवादी १३७ १२ परमेष्ठी (जैनसम्मत ) ३.६ परस्पराश्रय ६६. २ पराजय १२१. १६ देखो जयपराजयव्यवस्था परानुमेय १३१. १९ पराभासी १३६. १७ परार्थानुमान प्रशस्त और न्यायप्रवेश में प्राचीन लक्षण ६२. धर्मकीर्ति, शान्तरक्षित और सिद्धसेन ६२. ७ हेमचन्द्र ६२. १२ सर्वसम्मत प्रयोगद्वैविध्य २. २० जैनदर्शन की विशेषता ६३. ३ - हेमचन्द्र ६३.८ देखो पक्षप्रयोग, न्यायवाक्य परिणामिनित्यत्ववादी १२६. २६ परिणामिनित्यवाद ५३.९ परोक्ष २४. ३; १२७. १; १३७. ८ पर्याय ५६. ९ देखो द्रव्य पर्यायार्थिक ५६. १८ पर्यायास्तिक ६१. २४ पाणिनि १.६ पारमार्थिक २२. ४; १२७ ४ पारमार्थिकप्रत्यक्ष १३३. १७ पिङ्गल १.७ पुरुषत्व ३७.१ पूर्ववत् (छल ) ११५. १८ पौरुषेयत्व १३२. १९ प्रकरणसम (जाति) ११४. ३ प्रज्ञातिशय ३५. २३ प्रतिज्ञा 8३. २० देखो पक्षप्रयोग प्रतिदृष्टान्तसम ( जाति ) ११३. २९ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001069
Book TitlePramana Mimansa Tika Tippan
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorSukhlal Sanghavi, Mahendrakumar Shastri, Dalsukh Malvania
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1995
Total Pages340
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Nyay, Nay, & Praman
File Size24 MB
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