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पृ०५६. पं० १५.]
भाषाटिप्पणानि । है उतना प्राचीन बौद्ध ग्रन्थों में नहीं है और पिछले बौद्ध ग्रन्थों में तो वह नामशेष मात्र हो.गया है। जैन तर्कग्रन्थों में जो दूषण के भेद-प्रभेदों को वर्णन है वह मूलत: बौद्ध प्रन्थानुसारी ही है और जो दूषणाभास का वर्णन है वह भी बौद्ध परम्परा से साक्षात् सम्बन्ध रखता है। इसमें जो ब्राह्मण परम्परानुसारी वर्णन खण्डनीयरूप से पाया है वह खासकर न्यायसूत्र और उसके टोका, उपटीका ग्रन्थों से प्राया है। यह अचरज की बात है कि ब्राह्मण परम्परा के वैद्यक प्रन्थ 5 में प्रानेवाले दूषणाभास का निर्देश जैन ग्रन्थों में खण्डनीय रूप से भी कहीं देखा नहीं जाता।
प्रा० हेमचन्द्र ने दो सूत्रों में क्रम से जो दूषण और दूषणाभास का लक्षण रचा है उसका अन्य ग्रन्थों की अपेक्षा न्यायप्रवेश (पृ०८) की. शब्दरचना के साथ अधिक सादृश्य है। परन्तु उन्होंने सूत्र की व्याख्या में जो जात्युत्तर शब्द का अर्थप्रदर्शन किया है वह न्यायबिन्दु ( ३. १४० ) की धर्मोत्तरीय व्याख्या से शब्दश: मिलता है। हेमचन्द्र ने दूषणा. 10 भासरूप से चौबीस जातियों का तथा तीन छलों का जो वर्णन किया है वह अक्षरश: जयन्त की न्यायकलिका (पृ० १६-२१ ) का अवतरणमात्र है। ...
प्रा. हेमचन्द्र ने छल को भी जाति की तरह असदुत्तर होने के कारण जात्युत्तर हो माना है। जाति हो या छल सबका प्रतिसमाधान सच्चे उत्तर से ही करने को कहा है, परन्तु प्रत्येक जाति का अलग अलग उत्तर जैसा अक्षपाद ने स्वयं दिया है, वैसा उन्होंने नहीं दिया। 13 कुछ ग्रन्थों के आधार पर जातिविषयक एक कोष्ठक नीचे दिया जाता है
वादविधि, प्रमाणसमुश्चय, न्यायसूत्र ।
उपायहृदय। न्यायमुख, तर्कशास्त्र। , साधर्म्यसम वैधर्म्यसम उत्कर्षसम अपकर्षसम वर्यसम अवय॑सम विकल्पसम साध्यसम प्राप्तिसम अप्राप्तिसम प्रसङ्गसम प्रतिदृष्टान्तसम अनुत्पत्तिसम
१ मिलाश्रो-न्यायमुख, न्यायप्रवेश और न्यायावतार ।
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