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________________ द्वितीयाह्निक । अ० १. प्रा० २. सू० १-२. पृ० ३३. देखो १. १.८.१०. का टिप्पण--टिप्पण पृ० १६ । पृ०. ३३. पं०. १६. 'वासनोदबोध-सभी तार्किक विद्वान् स्मरण का लक्षण किसी एक आधार पर नहीं करते। कणाद ने१ प्राभ्यन्तर कारण संस्कार के आधार पर ही स्मरण का लक्षण प्रणयन किया है। पतञ्जलि ने२ विषय-स्वरूप के निर्देश द्वारा ही स्मृति को लक्षित 5 किया है, जब कि कणाद के अनुगामी प्रशस्तपाद ने अपने भाष्य में कारण, विषय और कार्य इन तीन के द्वारा स्मरण का निरूपण किया है३ । जैन परम्परा में स्मरण और उसके कारण पर तार्किकशैली से विचार करने का प्रारम्भ पूज्यपाद ( सर्वार्थ० १.१५) और जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण । विशेषा० गा० १८८,१८६) द्वारा हुआ जान पड़ता है। विद्यानन्द ने ( प्रमाणप० पृ० ६६) पतजलि की तरह विषयनिर्देश द्वारा ही स्मृति का लक्षण रचा । पर उसमें 10 आकार का निर्देश बढ़ाया। माणिक्यनन्दी ने ( परी० ३.३ ) कणाद की तरह संस्कारात्मक कारण के द्वारा ही स्मृति का लक्षण बाँधा, फिर भी उसमें आकारनिर्देश बढ़ाया ही। वादी देव ने (प्रमाणन० ३.३ ) विद्यानन्द और माणिक्यनन्दी दोनों का अनुसरण करके अपने स्मृति लक्षगण में कारण, विषय और आकार तीनों का निर्देश किया। प्रा० हेमचन्द्र ने तो माणिक्यनन्दी का ही अनुसरण किया और तदनुसार अपने लक्षणसूत्र में स्मृति के आकार 15 और कारण को ही स्थान दिया। पृ०. ३३. पं० २०. 'सदृशदर्शनादि'--"प्रणिधाननिबन्धाभ्यासलिङ्गलक्षणसादृश्यपरिप्रहाश्रयाश्रितसम्बन्धानन्तर्यवियोगैककार्यविरोधातिशयप्राप्तिव्यवधानसुखदुःखेच्छाद्वषभयार्थित्वक्रियारागधर्माधर्मनिमित्तेभ्यः ।"-न्यायसू० ३.२.४३ । इस सूत्र में जितने संस्कारोबोधक निमित्त संगृहीत हैं उतने एक जगह कहीं देखने 20 में नहीं आये। पृ० ३३. पं० २३. 'सा च प्रमाणम्'-स्मृति को प्रमा-प्रमाण-मानने के बारे में मुख्य दो परम्पराएँ हैं-जैन और जैनेतर। जैन परम्परा उसे प्रमाण मानकर परोक्ष के भेद रूप से इसका वर्णन करती है। जैनेतर परम्परावाले वैदिक, बौद्ध, सभी दर्शन उसे प्रमाण नहीं मानते अतएव वे किसी प्रमाणरूप से उसकी चर्चा नहीं करते। स्मृति को प्रमाण न 25 माननेवाले भी उसे अप्रमाण-मिथ्याज्ञान-नहीं कहते पर वे प्रमाण शब्द से उसका केवल व्यवहार नहीं करते। १ "आत्मनः संयोगविशेषात् संस्काराच्च स्मृतिः"-वैशे० ६.२.६। २ "अनुभूतविषयाऽसम्प्रमोषः स्मृतिः"-योगसू०१. ११ । ३ प्रशस्त० पृ०२५६। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001069
Book TitlePramana Mimansa Tika Tippan
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorSukhlal Sanghavi, Mahendrakumar Shastri, Dalsukh Malvania
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1995
Total Pages340
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Nyay, Nay, & Praman
File Size24 MB
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