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पृ० २१. पं० २.]
भाषाटिप्पणानि।
आलोके सत्यपि संशयज्ञानसम्भवात् काचाद्युपहतेन्द्रियाणां शुक्लशखादा पीताद्याकारज्ञानोत्पत्तेर्मुमूर्षाणां यथासम्भवमर्थेऽसत्यपि विपरीतप्रतिपत्तिसद्भावान्नार्थादयः कारणं ज्ञानस्येति स्थितम् ।" लघी• स्ववि० ६.७।। ... पृ. २०. पं० ३. 'योगिनां च'-तुलना-तत्त्वार्थश्ला० १. १४. ७-६ । प्रमेयक० पृ० ६४ A पृ०. २०. पं० १५. 'तस्मात् -तुलना
"स्वहेतुजनितोप्यर्थः परिच्छेद्यः स्वतो यथा।
तथा ज्ञानं स्वहेतूत्थं परिच्छेदात्मकं स्वतः॥"-लघी० ६.६ । तत्त्वार्थश्ला• पृ० २१८ । पृ०. २०. पं० १६. 'तदुत्पत्तिमन्तरेण'-तुलना"मलविद्धमणिव्यक्तिर्यथानेकपकारतः । कर्मविद्धात्मविज्ञप्तिस्तथानेकप्रकारतः ॥"-लघी० ६. ७ ।
- 10 "यथास्वं कर्मक्षयोपशमापेक्षिणी करणमनसी निमित्तं विज्ञानस्य न बहिरादयः ।"लघी० स्ववि० ६.७।
"न तज्जन्म न ताद्रूप्यं न तद्व्यवसितिः सहः ।
प्रत्येकं वा भजन्तीह प्रामाण्यं प्रति हेतुताम् ।"-लघी० ६.८ । परी० २.८, ६। प्रमाणन ४. ४६, ४७ ।
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अ० १. प्रा० १. सू० २६-२६. पृ० २१. सब प्रकार के ज्ञानों की उत्पत्ति का विचार करते समय सभी भारतीय दार्शनिकों ने ज्ञानों के कारण, उनके विषय, उनकी उत्पत्ति का क्रम तथा उनके कार्य आदि का अपने-अपने ढङ्ग से विचार किया है। प्रा० हेमचन्द्र ने यहाँ जो इन्द्रिय-मनोजन्य प्रत्यक्ष के सम्बन्ध में कारण, विषयादि का कथन किया है, वह जैनपरम्परा के अनुसार है। कारण, उत्पत्तिक्रम, विषयभेद, स्पष्टता का तरतमभाव, स्थिति, 20 कार्य आदि अनेक मुद्दे प्रत्यक्ष से सम्बन्ध रखते हैं।
बौद्ध परम्परा में चित्तप्रवृत्ति का निदर्शन कराते हुए चक्षुर्विज्ञान आदि छः विज्ञानवीथियों को लेकर उन्हीं मुद्दों पर बौद्ध तत्त्वज्ञान की प्रक्रिया के अनुसार सूक्ष्म और आकर्षक प्रकाश डाला गया है-अभिधम्मत्य० ४.६ से।
वैदिक दर्शनों में से न्याय-वैशेषिक दर्शनों ने, जिनका इस विषय का मत पूर्वमीमांसक 25 को भी मान्य है, निर्विकल्पक, सविकल्पक आदि क्रम से प्रत्यक्ष के सम्बन्ध में उन्हीं मुद्दों पर बड़े विस्तार और बहुत सूक्ष्मता से विचार किया है-प्रश० पृ० १८ । श्लोकवा० प्रत्यक्ष० श्ला० ११२-१२० । मुक्ता० का० ५२-६१ । सांख्यदर्शन ने भी-जिसकी प्रक्रिया योग, वेदान्तादि दर्शनों को मान्य है-अपनी प्रक्रिया के अनुसार इस सम्बन्ध में विचार किया हैसांख्यका० ३०। माठर.। सांख्यतः ।
.30 मा० हेमचन्द्र ने प्रस्तुत चार सूत्रों में उक्त मुद्दों के ऊपर जैन परम्परा के मन्तव्य का सूत्रण किया है। यह सूत्रण यद्यपि सामान्यरूप से आगमिक और प्रागमावलम्बी तार्किक
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