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________________ ३४ प्रमाणमीमांसायाः [ पृ० १०. पं० २३ विविच्चैव कामेहि विविश्व अकुसलेहि धम्मेहि सवितक्कं सविचारं विवेकजं पीतिसुखं पठमज्झानं उपसंपज्ज विहासिं; वितक्कविचारानं वूपसमा अत्तं संपसादनं चेतसेा एकोदिभावं अवितक्कं अविचारं समाधिजं पीतिसुखं दुतियज्कानं उपसंपब्ज विहासि ।" - मज्झिम० १. १. ४ । पृ० १०. पं० २३. 'न खलु कश्चिदहमस्मि' - तुलना - " नहि जातु कश्चिदत्र संदिग्धे 5 अहं वा नाहं वेति, न च विपर्यस्यति नाहमेवेति " - ब्रह्म० शाङ्करभा० पृ० २ । चित्सुखी पृ० २२ । 10 खण्डन ० पृ० ४८ । 15 पृ० १०. पं० २४. 'बोदधृत्वात् - तुलना पृ० १०. पं० २७. 'अथ प्रकाश' - पुनर्जन्म और मोक्ष मानने वाले सभी दार्शनिक देहादि जड़भिन्न प्रात्मतत्त्व को मानते हैं। चाहे वह किसी के मत से व्यापक हो या किसी के मत से अव्यापक, कोई उसे एक माने या कोई अनेक किसी का मन्तव्य क्षणिकत्वविषयक हो या किसी का नित्यत्वविषयक, पर सभी को पुनर्जन्म का कारण अज्ञान प्रादि कुछ न कुछ मानना ही पड़ता है । अतएव ऐसे सभी दार्शनिकों के सामने ये प्रश्न समान हैं जन्म के कारणभूत तत्त्व का आत्मा के साथ सम्बन्ध कब हुआ और वह सम्बन्ध कैसा है ? | अगर वह सम्बन्ध अनादि है तो अनादि का नाश कैसे ? । एक बार नाश होने के बाद फिर वैसा सम्बन्ध होने में क्या अड़चन ? । इन प्रश्नों का उत्तर सभी अपुनरावृत्तिरूप मोक्ष माननेवाले दार्शनिकों ने अपनी-अपनी जुदी-जुदी परिभाषा में भी वस्तुत: एक रूप से ही दिया है । 20 " प्रभास्वरमिदं चित्तं तत्त्वदर्शनसात्मकम् । प्रकृत्यैव स्थितं यस्मान् मलास्त्वागन्तवो मताः ॥ " - तत्त्वसं० का० ३४३५ | सभी ने आत्मा के साथ जन्म के कारण के सम्बन्ध को अनादि ही कहा है। सभी मानते हैं कि यह बतलाना सम्भव ही नहीं कि अमुक समय में जन्म के कारण मूलतत्व का आत्मा से सम्बन्ध हुआ । जन्म के मूलकारण को अज्ञान कहो, अविद्या कहो, कर्म कहो या और कुछ, पर सभी स्वसम्मत अमूर्त आत्मतत्व के साथ सूक्ष्मतम मूर्ततत्व का एक ऐसा विलक्षण सम्बन्ध मानते हैं जो अविद्या या अज्ञान के अस्तित्व तक ही रहता है और 25 फिर नहीं । अतएव सभी द्वैतवादी के मत से अमूर्त और मूर्त का पारस्परिक सम्बन्ध निर्विवाद I है । जैसे अज्ञान अनादि होने पर भी नष्ट होता है वैसे वह अनादि सम्बन्ध भी ज्ञानजन्य अज्ञान का नाश होते ही नष्ट हो जाता है । पूर्णज्ञान के बाद दोष का सम्भव न होने के कारण अज्ञान आदि का उदय सम्भवित ही नहीं अतएव अमूर्त मूर्त का सामान्य सम्बन्ध मोक्ष दशा में होने पर भी वह अज्ञानजन्य न होने के कारण जन्म का निमित्त बन नहीं 30 सकता । संसारकालीन वह आत्मा और मूर्त द्रव्य का सम्बन्ध ज्ञानजनित है जब कि मोक्षकालीन सम्बन्ध वैसा नहीं है । सांख्य-योग दर्शन आत्मा - पुरुष के साथ प्रकृति का, न्याय-वैशेषिक दर्शन परमाणुओं का, ब्रह्मवादी अविद्या-माया का, बौद्ध दर्शन चित्त-नाम के साथ रूप का, और जैन दर्शन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001069
Book TitlePramana Mimansa Tika Tippan
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorSukhlal Sanghavi, Mahendrakumar Shastri, Dalsukh Malvania
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1995
Total Pages340
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Nyay, Nay, & Praman
File Size24 MB
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