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________________ यत्किचित् प्रासंगिक सद्भाग्य से पण्डितजी उस घात से सानन्द पार हो गये और फिर धीरे धीरे स्वास्थ्य लाभ कर, अपने प्रारब्ध कार्य का इस प्रकार समापन कर सके। हमारे लिये यह भानन्दद्योतक उद्यापन का प्रसंग है। पण्डितजी अपने संपादकीय वक्तव्य में, प्रस्तुत ग्रन्थ के सम्पादन कार्य में हमारे प्रोत्साहन के लिये आभार प्रदर्शित करते हैं, लेकिन इस पूरी ग्रन्थमाला के सम्पादन में, प्रारंभ ही से हमें जो उनका प्रोत्साहन मिल रहा है उसका आभार प्रदर्शन हम किस तरह करें। पण्डितजी की उक्त पिछली व्याधि के समय हमें तो यह शंका हो गई थी, कि यदि कहीं आयुष्कर्म के क्ष्य से पण्डितजी का यह पौद्गलिक शरीर ज्ञानज्योति शन्य हो गया तो फिर व्याकुलहदय । हम इस ग्रन्थमाला के समूचे कार्य को ठीक चला सकेंगे या नहीं-सो भी समझ नहीं सकते थे। ग्रन्थमाला के इस सम्पादन भार को हाथ में लेने और समुच्चय लेखन-कार्य में प्रवृत्त होने में जितना बाह्य प्रोत्साहन हमें ग्रंथमाला के प्राणप्रतिष्ठाता श्रीमान् बाबू बहादुरसिंहजी से मिल रहा है उतना ही आन्तरिक प्रोत्साहन हमें अपने इन ज्ञानसखा पण्डितजी से मिल रहा है और इसलिये सिंघी जैन ग्रन्थमाला हम दोनों के समानकर्तृत्व और समाननियंतृत्व का संयुक्त ज्ञानकीर्तन है। और इस कीर्तन की प्रेरक और प्रोत्साहक है विदेही ज्ञानोपासक बाबू श्रीडालचन्दजी सिंघी की वह पुण्यकामना, जो उनके सत्पुत्र और उन्हीं के सदृश ज्ञानलिप्सु श्रीमान् बाबू बहादुरसिंहजी द्वारा इस प्रकार परिपूर्ण की जा रही है। सिंघीजी की सद्भावना ही पण्डितजी के क्षोण शरीर को प्रोत्साहित कर लेखनप्रवृत्त कर रही है और हमारी कामना है कि इस ग्रंथमाला में पण्डितजी के ज्ञानसौरभ से भरे हुए ऐसे कई सुन्दर ग्रन्थपुष्प अभी और ग्रथित होकर विद्वानों के मन को आमोद प्रदान करें। बंबई, भारतीय विद्याभवन । . फाल्गुन पूर्णिमा संवत् १९६५ ( जिन विजय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001069
Book TitlePramana Mimansa Tika Tippan
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorSukhlal Sanghavi, Mahendrakumar Shastri, Dalsukh Malvania
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1995
Total Pages340
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Nyay, Nay, & Praman
File Size24 MB
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