________________
दुर्जनसुजनस्वरूप (वि.) ४५६. दैवोपालम्भ (अ.) ११६. . दुर्योधन (अ.) १७०, ४१३; (वि.) ४५१. दोष (अ.) १५९, १६०, १६१, १६२, दुर्वच (अ.) ३२३; (वि.) ३२४.
१६३, १६४, १६७, १६९, १९९, दुःख (वि.) १०१.
२०१, २०२, २११, २१४, २२२, दुष्टत्व (अ.) १६५.
२२६, २२८, २३५, २३९, २४१, दूत (अ.) ४२१; (वि.). ४५८.
२६१; (वि.) १५९. २०२, २७७. दूरस्थाभाषण (वि.) ३३५.
दोषगुणालंकार (अ.) ४०१. दूर्वा (वि.) २२७.
दोषत्व (अ.) १७७. दूषण (वि.) ४५९.
दोष-विशेष (लक्षण) (अ.) १५९. दृष्टान्त (अ.) ३५३; (वि) ३५३. दोषाभाव (वि.) २८३, २८४. दृष्टिव्याकोशकुञ्चन (अ) ११४. द्यावापृथिवी (वि.) १७९. देव (वि.) ४११. ।
गतनैपुण्य (वि.) १२. देवकुलादिक (अ.) ११९.
द्रव्य (अ.) २४, २६, ३७४; (वि.) देवताविषया-रति (वि.) १५३.
१८३, ३४४, ३७३. देवदारु (वि.) १८३.
द्रव्य (अनुयोग) (वि.) २. देवविषया (रति) (अ) १:७.
द्रव्यपुरुषसम्पत् (वि) २२८. देवसभ (वि) १८३.
द्रव्यादिभाषाश्लेष (अ.) ३३०. देवसभा (वि.) १८३.
द्रव्याद्यनुयोग (अ.) २. देविका (वि.) १८३.
द्राक्षा (वि.) १८२, १८३. देवी (वि.) ४४४.
द्रुत (वि.) ३३५. । देश (अ.) ६५, १७९, ३४०; (वि.) द्रुतविलम्बित (अ.) ३२२, (वि.) ४६०. - १७९, १८३.
द्रुति (अ.) २८९; (वि.) ९६. देशकालविभाग (वि.) २२८. द्रुत्यादिस्वरूप (भोगीकरण) (वि.) ९७. देशकालविशेषावेश (वि.) ९९. . द्रौपदी (वि.) ११७. देश्य (अ.) २२६.
द्वन्द्वयुद्ध (वि.) ४५८. देमात्रनिष्ठ (अलंकार) (अ) ४३२. । द्वादशधा (स्वस्त्री) (अ.) ४१५. देहविकार (अ.) ४०६, ४२४. द्वादशनायक (समवकार) (अ.) ४३८, दैन्य (अ.) ११६, ११८, १२६, १२७, (वि.) ४३८.
१२८, १३६ (लक्षण); (वि.) ३३५. द्विगु (वि.) २५१. देव-अभिलाषविप्रलम्भ (अ) १११. द्विज (वि.) ४११. दैवज्ञ (वि.) १८७.
द्विपदी (अ.) ४४९. देवी (भाषा) (अ.) २.
द्विलोप (अ.) ३४४.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org