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समुत्थिते धनुर्ध्वनौ (अ.) १८९, १६२. | ससार साकं (वि.) ४७३, ३०५. . [ अ. च. ] सस्नुः पयः पपुः (अ.) २६२, २१७. सम्यग्ज्ञानमहाज्योतिर् (अ.) २९०, २२७. [शि. व. स. ५. श्लो. २८]. सयलं चेव निबन्धं (वि.) ६१४, ४५६. सहकाररसाचिंता (वि.) ३१४, १९५. स यस्य दशकन्धरं (अ.) ४९६, ३३७. सह दिअसनिसाहिं (वि.) ५४८, ३७८. स रणे सरणेन (वि.) ४७४, ३०५. [क. मं. जवनिका. २ 'लो. ९]
[रु. का. लं. अ. ३. १९] | संह दीर्घा मम (अ.) ६०८, ३७८.। सरले साहसरागं (अ.) ४८८, ३३१. [का. द. परि ३. श्लो. ३५२ ]
_ [मा. मा. अं. ६. श्लो. १० ] | सहस्र क्षैरजैर् (अ.) ३६४, २६०. सरस्वति पदं (अ.) ४५७, ३०२. | सह्याद्रेत्तरे (वि.) २४०, १८५. सरस्वति यथा (वि.) ४६२, ३०३. सहसा नलिनी (अ.) ४७२, ३२२. सरांसीवामलं (अ.) २७८, २२४. संकेतकालमनसं (अ.) ६३७, ३९१. सरोजपचे परिलीनषटपदे (अ.)६२४,३८६. संक्षिपता यामवती: (वि.) ८६, २६. सर्वकार्यशरीरेषु (अ.) २९३, २२८. संचारिणी दीपशिखेव (अ.) १७३, १४६.
[शि. प. स. २. 'लो. २८] . [र. वं. स. ६. लो. ६७ ] सर्वत्र ज्वलितेषु (वि.) १९४, १७२. । संप्रहारे प्रहरणैः (अ.) १८३, १६०.
[ता. व. अं. ३] | संप्राप्तेऽवधिवासरे (अ.) १५५, १४३. सर्वप्राणप्रगुण (वि.) ४५२, २८८. संयत याचमानेन (अ.) ४५२, ३०१. म. च. अं. १ श्लो. ४५]
[ दे. श. 'लो. १४.] सर्वाशारुधि दग्धवीरुधि (अ.)४३४, २९६. संरम्भः करिकीट (अ.) ३५१, २४५.
सुभा. १७०८ भट्टबाणस्य ]| संवादिसारसंपत्ती (वि.) ५३१, ३२६. स वक्तुमखिलान् (अ.) ७७, ८०.
[दे. श. 'लो. ७८.] सविता विधवति (अ.) ५१६, ३४५. संस्तम्भिनी (वि.) २१५, १७९. सव्रीडा दयितानने (अ.) १८४, १६०. संहयचक्काअजआ (अ.) २१३, २०५.
[सुभाषितावली ७८) साकं कुरङ्गकदृशा (वि.) १८२, १५३. सशमीधान्यपाकानि (वि.) २७८, १९१. | सा तत्र चामीकर (वि.) २२८, १८२. सशल्लकीशाल (वि.) २५०, १८७. सा दयितस्य (वि.) ३८९, २५५. सशोणितैः क्रत्यभुजां (अ.) १९२, १६३. साधनं सुमहद् (अ.) २९७, २२९. स संचरिष्णुर् (वि.) ९, ८. साधु चन्द्रमसि (अ.) ३५५, २४६.
[शि. व. स. १. लो. ४६ ] | सानुज्ञमागमिष्यन् (अ.) ६३५, ३९०. ससत्त्वरतिदे नित्यं (वि.) ४९०, ३११. सा बाला वयम् (अ.) ५९७, ३७५. [खट. का. लं. 'लो. १५] ।
[अ. श. *लो. ३४]
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